Thursday, 20 March 2014

चुनावी स्याही.....


तेरा रंग ऐसा चढ़ गया...

आजकल देश में चुनावी माहौल है और अगले ही महीने से मतदान शुरू हो जाएगा। आपने अकसर देखा होगा कि वोट डालने के बाद लोगों के बाएं हाथ की अंगुली में स्याही का निशान दिखाई देता है, जो कई दिनों तक नहीं मिटता। दरअसल यह निशान ही इस बात का सूचक होता है कि आपने अपने मत का प्रयोग कर लिया है। क्या आपको पता है इस चुनावी स्याही को कहां व कैसे बनाया जाता है?
पहली बार न मिटने वाली स्याही का इस्तेमाल तीसरे आम चुनाव में 1962 में हुआ था। इसके निर्माण की कहानी भी काफी रोचक है। 


इस स्याही का फार्मूला भी पेप्सी के फार्मूले की तरह ही गुप्त रखा गया है। यह फार्मूला दिल्ली स्थित नेशनल फिजिकल लैब द्बारा तैयार किया गया है। इसका मुख्य रसायन सिल्वर नाइट्रेट है जोकि पांच से 25 फीसदी तक होता है। बैंगनी रंग का यह रसायन प्रकाश में आते ही अपना रंग बदल देता है व इसे किसी भी तरह से मिटाया नहीं जा सकता है।
 

जिस कंपनी में यह तैयार किया जाता है वह मैसूर के राजा नलवाडी कृष्णराज वाडियार द्बारा 77 साल पहले स्थापित की गई थी। आजादी के बाद राज्य सरकार ने उसका राष्ट्रीयकरण कर दिया। हालांकि महाराजा के परिवार का इस कंपनी में एक फीसदी के करीब हिस्सा है। यह स्याही छोटी-छोटी बोतलों या फायल में उपलब्ध कराई जाती है। इस कंपनी के 77 कर्मचारियों ने इसका उत्पादन शुरू कर दिया है। इसकी 1० मिलीलीटर की बोतल की कीमत 183 रुपए है जिससे 7०० लोगों की उंगलियों पर निशान लगाए जा सकते हैं।
 

इस स्याही को देश में होने वाले चुनाव के लिए ही नहीं बल्कि मालदीव, मलेशिया, कंबोडिया, अफगानिस्तान, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका में भी इस स्याही की सप्लाई की जाती है। जहां भारत में बाएं हाथ की दूसरी उंगली के नाखून पर इसका निशान लगाया जाता है वहीं, कंबोडिया व मालदीव में इस स्याही में उंगली डुबानी पड़ती है। बुरंडी व बुर्कीना फासो में इसे हाथ पर ब्रश से लगाया जाता है। जबकि अफगानिस्तान में इसे पेन के माध्यम से लगाया जाता है।
 

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