Monday 25 March 2019

दलित और मुस्लिम देते हैं सहारनपुर लोकसभा सीट को सहारा


रिजवान नूर खान 

सहारनपुर संसदीय सीट पर लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया सोमवार 18 मार्च को शुरू हो गई। इसके साथ ही सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक सरगर्मी भीअपने चरम पर पहुंच गई है। यह सीट कई मायनों में सभी राजनीतिक दलों के लिए अहम है। पहले चरण में 11 अप्रैल को इस निर्वाचन क्षेत्र में मतदान होना है। संभावित प्रत्याशियों ने लोगों को लुभाने के लिए वादों का जाल फेंकना शुरू कर दिया है। ऐसे में यहां सभी प्रमुख दलों ने अपनी जीत पक्की करने के लिए कमर कस ली है। आइए जानते हैं पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अबतक सहारनपुर लोकसभा के राजनीति सफर के बारे में-  


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सबसे ज्यादा पांच बार राशीद बने सांसद

सहारनपुर लोकसभा सीट पहले लोकसभा चुनाव से ही कांग्रेस का गढ़ बन गई। यहां 1952 से 1971 तक लगातार चार लोकसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों ने विजयी पताका फहराया। कांग्रेस के इस विजय अभियान को जनता पार्टी सेक्यूलर के नेता राशीद मसूद ने रोका। इस लोकसभा क्षेत्र से सबसे ज्यादा पांच बार राशीद मसूद सांसद चुने गए। खास बात यह रही कि वह चार बार पार्टी बदलकर चुनाव लड़े और जीते। इस लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी को सिर्फ एक बार ही जीत का स्वाद चखने को मिला है, जबकि बहुजन समाज पार्टी दो बार यहां से जीती है और भाजपा तीन बार इस सीट पर विजेता बनी है।

दूसरे लोकसभा चुनाव में मिला स्वतंत्र सीट का नाम

दलित और मुस्लिम बाहुल्य यह क्षेत्र 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के दौरान दो लोकसभा क्षेत्रों में बंट गया था। इस क्षेत्र का एक हिस्सा देहरादून जिला और बिजनौर उत्तर-पूर्व लोकसभा सीट का हिस्सा था, जबकि दूसरे हिस्‍से का नाम सहारनपुर पश्चिम और मुजफ्फरनगर उत्तर लोकसभा सीट था।1957 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले इस निर्वाचन क्षेत्र को दोबारा गठित कर सहारनपुर लोकसभा का नाम दिया गया। 1957 में दूसरी लोकसभा के चुनाव में इस क्षेत्र से कांग्रेस ने अजीत प्रसाद जैन और सुंदरलाल को चुनाव लड़ाया था। अजीत प्रसाद को 202081 लाख वोट मिले, जबकि सुंदर लाल को 161181 लाख वोट मिले। दोनों उम्मीदवारों को विजेता घोषित किया गया। गौरतलब है कि संभवत: उस वक्त लोकसभा क्षेत्र का आकार बड़ा होने के चलते दो विजेता घोषित किए गए थे और यह स्थिति देश के 40 से अधिक लोकसभा क्षेत्रों की थी। इस सीट पर निर्दलीय लड़े अख्तर हसन ख्वा़जा 138996 लाख वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे।

जब पांच लाख वोटों से जीती थी कांग्रेस

1962 में सहारनपुर लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। कांग्रेस की लहर में इस निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर लड़े सुंदर लाल ने 104709 लाख वोट हासिल करकेजीत दर्ज की। उन्होंने जनसंघ के ममराज को पांच लाख से ज्यादा वोटों के अंतर सेहराया था। इसी तरह 1967 के चुनाव में भी कांग्रेस से लड़े सुंदर लाल ने 120891 लाख वोट हासिल कर जीत दर्ज की। सम्युक्त सोशलिस्‍टपार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे एस सिंह 83239 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस की जीत का यह सिलसिला 1971 में भी चला। 1977 में छठी लोकसभा के लिए हुए मतदान में यहां कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस की लहर यहां थम गई। भारतीय लोकदल के उम्मीदवार राशीद मसूद ने कांग्रेस प्रत्याशी जाहिद हसन को करारी शिकस्त दी। राशीद मसूद सातवीं लोकसभा के लिए 1980 में भी सहारनपुर से सांसद चुने गए। वह जनता पार्टी सेक्यूलर के टिकट पर चुनाव लड़े थे।

दो बार की हार के बाद जीती कांग्रेस

1984 में कांग्रेस ने सहारनपुर सीट पर पलटी मारी और दो बार की हार के बाद जीत हासिल की। कांग्रेस के यशपाल सिंह को 277339 लाख वोट मिले,  जबकि भारतीय लोकदल प्रत्याशी राशीद मसूद को 204730 लाख वोट हासिल हुए। इसके बाद 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में राशीद मसूद जनता दल प्रत्याशी बने और जीत हासिल की। कांग्रेस दोनों बार यहां दूसरे नंबर पर आई। इस बीच भाजपा नेदेश की राजनीति में बढ़त बनाते हुए 1996 और 1998 में सहारनपुर सीट को अपने नाम कर किया।

1999 में बसपा ने दर्ज की जीत

1999 में 13वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में सहारनपुर सीट पर बसपा ने जीत हासिल की। यहां रालोद के राशीद मसूद ने बसपा उम्मीबदवार को कड़ी टक्कर दी। उन्हें 213352 लाख वोट मिले, जबकि विजेता बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खान को 235659 लाख वोट मिले। कई दल बदलने वाले राशीद मसूद ने 2004 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की। राशीद को बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खान ने कड़ी टक्कर दी। राशीद को 353271 लाख वोट मिले, जबकि मंसूर को 326441 लाख वोट प्राप्त हुए। 15वीं लोकसभा के लिए 2009 में सहारनपुर सीट पर बसपा ने कब्जा जमाया। उसके प्रत्याशी जगदीश सिंह राणा को354807 लाख वोट पाए, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सपा नेता राशीद मसूद को 269934 लाख वोट मिले।

16 साल बाद भाजपा को मिली जीत

16वीं लोकसभा के लिए 2014 के चुनाव में मोदी लहर का असर रहा और सहारनपुर सीट पर भाजपा को 16 साल बाद जीत नसीब हुई। इससे पहले भाजपा 1998 में इस सीट से चुनाव जीती थी। 2014 में भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल को 472999 लाख वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस नेता इमरान मसूद को 407909 लाख वोट हासिल हुए।

राजा सहारन पीर ने बसाया था सहारनपुर

सहारनपुर की स्थापना 1340 के आसपास हुई और इसका नाम एक राजा सहारन पीर के नाम पर पड़ा। सहारनपुर की काष्ठ कला और देवबन्द दारूल उलूम विश्वपटल पर सहारनपुर को अलग पहचान दिलाते हैं। सहारनपुर में प्राचीन शाकुम्भरी देवी सिद्धपीठ मंदिर, इस्लामिक शिक्षा का केन्द्र देवबन्द दारूल उलूम, देवबंद का मां बाला सुंदरी मंदिर, नगर में भूतेश्वर महादेव मंदिर औरकम्पनी बाग इसके प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। लकड़ी पर नक्काशी करने का काम सहारनपुर में काफी अधिक होता है। लखनऊ से इसकी दूरी 702.6 किलोमीटर और दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर है।

Thursday 21 March 2019

लोकसभा चुनाव 2019: जाट और मुस्लिम तय करते हैं कैराना की किस्मत, इस बार करारा संघर्ष

रिजवान नूर खान 

कैराना संसदीय सीट के लिए 18 मार्च (सोमवार) से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। परंपरागत रूप से रालोद के लिए खास रही इस सीट पर इस बार भी कांटे का मुकाबला है। मुस्लिम और जाट बाहुल्यस इस निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण बैठाने का गणित जनता अक्सलरगलत साबित करती रही है। यही वजह है कि 2014 में यहां से जीते भाजपा के हुकुम देव सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में रालोद की प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने भाजपा को शिकस्त  दे दी। यहां हम कैराना लोकसभा क्षेत्र की पूरी चुनावी और राजनीतिक तस्वीतर आपके सामने पेश कर रहे हैं-

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के साथ हुए चुनावी गठबंधन में रालोद के हिस्सें में यह सीट गई है। यहां पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होना है।


दो बार से अधिक नहीं मिली किसी को जीत

कैराना लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां पर कोई भी दल दो बार से ज्यादा लगातार जीत हासिल नहीं कर सका है। मुस्लिम और जाट बाहुल्य इस निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण बैठाने का गणित जनता अक्सर गलत साबित करती रही है। ऐसा इसलिए क्यों कि इस सीट पर किसी भी दल का कभी भी वर्चस्व नहीं रहा है। यहां की जनता हर बार परिवर्तन कर काबिज दल को बाहर कर देती है। यह सिलसिला पहले लोकसभा चुनाव से चला आ रहा है। यहां पर कांग्रेस की लहर के बावजूद पहले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी ने भारी मतों से जीत हासिल कर कांग्रेस को हराया था। बाद में यहां जनता दल के प्रत्याशी ने लगातार दो बार 1989 और 1991 में जीत हासिल की, लेकिन तीसरी बार वह जीत नहीं सके। इसी तरह यह कारनामा अजीत सिंह चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने 1999 और 2004 में कर दिखाया, लेकिन वह भी तीसरी बार लगातार जीत हासिल नहीं कर सके। अब तक भाजपा, बसपा और सपा, जनता पार्टी सेक्युलर ने इस लोकसभा सीट पर सिर्फ एक-एक बार ही जीत दर्ज की है।

 

जब नहीं चली कांग्रेस की लहर, निर्दलीय ने चटाई धूल 

देश के लिए तीसरी बार हुए लोकसभा चुनाव के दौरान अस्तित्व में आई कैराना लोकसभा सीट जाट और मुस्लिम समुदाय बाहुल्य होने के चलते कड़े चुनावी मुकाबलों की गवाह रही है। 1962 में जब देश भर में कांग्रेस की लहर चल रही थी, तब यहां से कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी। 1962 में पहली बार इस लोकसभा सीट पर हुए मतदान में निर्दलीय उम्मीदवार यशपाल सिंह ने उस समय देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस के दिग्गज नेता अजीत प्रसाद जैन को हराया था। यशपाल को 134574 लाख वोट मिले, जबकि अजीत को 81140 वोट मिल थे। गौरतलब है कि अजीत प्रसाद जैन 1951 में सहारनपुर लोकसभा सीट से सांसद रह चुके थे।

1967 में जातीय समीकरण ने खिलाया गुल 

1967 में जब चौथी लोकसभा के गठन के लिए चुनाव कराए गए, तब कैराना सीट पर दूसरी बार संसदीय चुनाव हुआ। देश भर में वर्चस्व कायम रखने वाली कांग्रेस ने एक बार फिर यहां से अजीत प्रसाद जैन को चुनाव मैदान में उतारा। उनके सामने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने जीए खान को प्रत्याशी बनाया। दोनों नेताओं के बीच कड़ा संघर्ष हुआ। जीए खान ने 76415 वोट पाकर जीत हासिल की। अजीत को 74750 वोट मिले। दोनों के बीच हार का अंतर दो हजार से भी कम वोटों का रहा। 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर चुनावी मैदान में ताल ठोकी और जातीय समीकरण का लाभ लेने के लिए मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट थमाया। इसका नतीजा भी कांग्रेस के लिए खुशियां लेकर आया। कांग्रेस उम्मीदवार शफकत जंग ने 162276 लाख वोट हासिल किए, जबकि भारतीय क्रांति दल के प्रत्याशी गयूर अलीखान को 89510 वोट के साथ हार का सामना करना पड़ा।

आपातकाल ने कांग्रेस को दिया था जोर का झटका

कैराना सीट पर 1977 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बेहद खराब रहा। यहां से तत्कालीन सांसद शफकत जंग अपनी सीट नहीं बचा सके। उन्हें लोकदल के प्रत्याशी चंदन सिंह ने करारी शिकस्त दी। चंदन को 242500 लाख वोट हासिल हुए, जबकि कांग्रेस के शफकत को 95642 वोट ही मिले। 1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी सेक्यूलर की नेता गायत्री देवी ने 203242 लाख वोटों के साथ विजेता बनीं। कांग्रेस इंदिरा के प्रत्याशी नारायण सिंह 143761 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। 1984 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की। कांग्रेस प्रत्याशी अख्तर हसन 236904 वोटों के साथ विजेता बने। लोकदल प्रत्याशी श्याम सिंह 138355 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे।

1989 में जनता दल ने की फतह 

1989 का लोकसभा चुनाव इस सीट से जनता दल प्रत्याशी हरपाल सिंह ने 306119 लाख वोटों के साथ जीता। प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस नेता बशीर अहमद 184290 लाख वोट पाकर हार गए। जनता दल ने 1991 का चुनाव भी इस सीट से अपने नाम किया। हालांकि1996 में कैराना सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की। इस बार सपा नेता मुनव्वर हसन ने 184636 लाख मत पाकर जीत दर्ज की,जबकि दूसरे नंबर पर रहे भाजपा नेता उदयवीर सिंह को 174614 मतों से ही संतोष करना पड़ा। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भाजपा की लहर चली। इस तरह दो बार से हार का सामना कर रही भाजपा ने कैराना सीट अपने नाम की। यहां से उसके प्रत्याशी वीरेंद्र वर्मा के जीत मिली और सपा नेता मुनव्वर हसन को हार का सामना करना पड़ा।

इस बार रालोद ने भाजपा से लिया बदला 

1999 में 13वीं लोकसभा के लिए हुए मतदान में कैराना लोकसभा क्षेत्र की जनता ने राष्ट्रीय लोकदल पर विश्वास जताया और उसके प्रत्याशी आमिर आलम 206345 लाख वोट पाकर विजेता बने। दूसरे नंबर पर यहां से बीजेपी के निरंजन सिंह मलिक रहे। 2004 के लोकसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय लोकदल ने अपना जादू कायम रखा और उसकी अनुराधा शर्मा को भारी मतों से जीत मिली। रालोद की जीत का यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका। 2009 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने सेंध लगाते हुए सीट रालोद से यह सीट हथिया ली। बसपा प्रत्यााशी तबस्सुम बेगम ने 283259 लाख वोट पाकर विजेता बनीं। दूसरे नंबर पर 124802 लाख वोट पाकर सपा नेता साजन मसूद रहे। कांग्रेस तीसरा और भाजपा को चौथा स्थान हासिल हुआ। 2014 में भाजपा ने यहां पलटी मारी और कैराना लोकसभा सीट पर कब्जा जमाया। यहां से भाजपा नेता हुकुम देव सिंह ने भारी मतों से जी‍त हासिल की। उनका असमय निधन होने के बाद यहां हुए उप चुनाव में भाजपा ने यह सीट गंवा दी। यहां से सपा और रालोद की गठबंधन प्रत्या शी तबस्सुम हसन ने फिर जीत हासिल की।

कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था कैराना  

कैराना उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। कैराना प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था, जो बाद में बिगड़कर किराना नाम से जाना गया और फिर कैराना हो गया। मुजफ़्फ़रनगर से करीब 50 किलोमीटर पश्चिम में हरियाणा पानीपत से सटा यमुना नदी के पास बसा कैराना राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का घर भी माना जाता है। यहां मुस्लिम और जाट मतदाताओं की संख्या अधिक है। हालांकि यह जातिगत आंकड़ा हर बार एक जैसा चुनावी फैसले नहीं करता है। इस लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से कैराना की दूरी करीब 103 किलोमीटर है।

इस आर्टिकल को दैनिक जागरण की वेबसाइट पर भी पढ़ा जा सकता है। लिंक ये रहा.....
https://www.jagran.com/elections/lok-sabha-lok-sabha-election-2019-know-everything-about-kairana-lok-sabha-seat-19061340.html