Sunday 29 September 2013

हमारे राधाकृष्णन



डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन


भारत के तमिलनाडु में चेन्नई के पास एक छोटे से गांव तिरूतनी में सन् 1888 को एक गरीब ब्राहमण परिवार में हुआ था। विद्बान और दार्शनिक डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी थे। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली रामास्वामी था और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में कार्यरत थ्ो। राधाकृष्णन के पांच भाई और एक बहन थी। माना जाता है कि राधाकृष्णन के पुरखे सर्वपल्ली नामक ग्राम के रहने वाले थ्ो। इसीलिए उन्होने अपने ग्राम को सदैव याद रखने के लिए नाम के आगे सर्वपल्ली प्रयोग करना शुरू किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह अति सुंदर व सुशील ब्राहम्ण कन्या शिवकामु के साथ संपन्न हुआ था। राधाकृष्णन के परिवार में पांच पुत्र व एक पुत्री थी। 

प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा

डॉ. राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा वेल्लूर के एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की डिग्री प्रा’ की। सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। 12 वर्ष की छोटी उम्र में ही राधाकृष्णन ने बाईबिल के कई अध्यायों को याद कर लिया था। इसके लिए उन्हें उनका पहला 'विश्ोष योग्यता सम्मान’ प्रदान किया गया था। उन्होनें मैट्रिक की प्ररीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी। राधाकृष्णन की प्रतिभा के कारण उन्हें मद्रास स्कू ल द्बारा छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई थी। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनोखी प्रतिभा के धनी व उच्च कोटि के छात्र थ्ो। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का व्यक्तित्व

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बचपन की पढ़ाई-लिखाई एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी, और उस समय पश्चिमी जीवन मूल्यों को विद्यार्थियों में गहरे तक स्थापित किया जाता था। यही कारण है कि क्रिश्चियन संस्थाओं में अध्ययन करते हुए राधाकृष्णन के जीवन में उच्च गुण समाहित हो गए। और वह परंपरागत तौर पर ना सोच कर व्यहारिकता की ओर उन्मुख हो गए थे। शिक्षा के प्रति रुझान ने उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया था। डॉ.राधाकृष्णन बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही देश की संस्कृति को प्यार करने वाले व्यक्ति भी थे।

सीधा-सरल चरित्र

डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था। उनका व्यक्तित्व व चरित्र बेहद सीधा और सरल था। वो जमीनी बातों पर ज्यादा गौर करते थ्ो। उनका कहना था कि ''चिड़िया की तरह हवा में उड़ना और मछली की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें मनुष्य की तरह जमीन पर चलना सीखना है। 'मानवता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने यह भी कहा, 'मानव का दानव बन जाना, उसकी पराजय है, मानव का महामानव होना उसका एक चमत्कार है और मानव का मानव होना उसकी विजय है’। वह अपनी संस्कृति और कला से लगाव रखने वाले ऐसे महान आध्यात्मिक राजनेता थे जो सभी धर्मावलम्बियों के प्रति गहरा आदर भाव रखते थे। 

जिम्मदारियां व पद्भार

सन् 1949 से सन 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान माना जाता है। सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्बितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की। डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आप को शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। 

डॉ. राधाकृष्णन को दिए गए सम्मान

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की तरह कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण उपाधियों पर रहते हुए भी उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था। राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्बारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई संप्रदाय के व्यक्ति थे। उन्हें आज भी शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन का निधन

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने वाले इस महापुरूष को वृद्धावस्था के दौरान बीमारी ने अपने चंगुल में जकड़ लिया। 17 अप्रैल, 1975 को 88 वर्ष की उम्र में इस महान दार्शनिक,लेखक , शिक्षाविद ने इस नश्वर संसार को अलविदा कह दिया।





 

Tuesday 17 September 2013

डिजिटल हुआ यंगिस्तान


आजकल युवाओं को गैजेट मनिया नाम का रोग लग चुका है। गैजेट मनिया मतलब नई टेक्नोलाजी के गैजेट्स के प्रयोग के प्रति हद से ज्यादा पागलपन। भावी युवा पीढ़ी रोज-रोज नई तकनीकी से रूबरू हो रही है। युवा आज पहले से ज्यादा टेक सेवी होता जा रहा है। इसका कारण सिर्फ कम समय में अपनी रोजाना बढ़ रही महत्वाकांछाओं को पूरा करने की मानसिकता भर है। टीसीएस सर्वे 2०12-13 के अनुसार भारत की माडर्न युवा पीढèी अपनी पहले की पीढèी को काफी पीछे छोड़ते हुये फेसबुक और ट्वीटर, याहू, जीमेल, गूगल प्लस जैसे सोशल नेटवर्क्स को संचार साधन के रूप में उपयोग कर रही है।
14 भारतीय शहरों के लगभग 17,5०० हाईस्कूल विद्यार्थियों पर किए गए टीसीएस सर्वे यह साफ करता है कि स्मार्ट डिवाइसेज एवं ऑनलाइन एक्सेस के अभूतपूर्व स्तर ने इस पीढèी को बहुत अधिक संपर्कशील बना दिया है। इससे इनके एक-दूसरे से किए जाने वाले संचार के तरीकों में बड़ा बदलाव हो रहा है, साथ ही साथ इससे इनके शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन दोनो में कायापलट होने लगा है।

 

Friday 13 September 2013

दैत्याकार शिकारी डायनासोर






डायनासोर हमेशा से ही मानव जाति के लिए जिज्ञासा और कौतूहल का विषय रहे हैं। इनके अस्तित्व को जीव विज्ञानियों ने कभी नकारा नहीं है। समय-समय पर वैज्ञानिकों को मिले इनके जीवाश्म धरती पर इनके अस्तित्व को पुख्ता करते हंै। डायनासोर देखने में बेहद खूंखार, बड़े से बड़े जीव को भी अपने पंजों में दबाकर उड़ने की ताकत रखने वाले दैत्याकार डायनासोर की कल्पना आज भी हमारे शरीर में सिहरन पैदा कर देती है।
डायनासोर का मतलब होता है दैत्याकार छिपकली। ये छिपकली और मगरमच्छ कुल के जीव थे। करीब 25 करोड़ वर्ष पूर्व जिसे जुरासिक काल कहा जाता है। 6 करोड़ वर्ष पूर्व क्रेटेशियस काल के बीच पृथ्वी पर इनका ही साम्राज्य माना जाता था। उस काल में इनकी कई प्रजातियां पृथ्वी पर पाई जाती थीं। इनकी कुछ ऐसी प्रजातियां भी थीं, जो पक्षियों के समान उड़ती थीं। ये सभी डायनासोर सरिसृप समूह के जीव थे। इनमें कुछ छोटे डायनासोर थ्ो जिनकी लंबाई 4 से 5 फीट थी। तो कुछ विशालकाय 5० से 6० फीट लंबे थे।