Friday 27 December 2013

मिर्ज़ा ग़ालिब


जाग रहा है गजलकार

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले

हजारों-लाखों शेर लिखने और इससे भी ज्यादा दिलों पर काबिज रहने वाले मिर्जा गालिब उर्फ असदउल्ला खां का जन्म उनके ननिहाल आगरा में 27 दिसंबर, 1797 ई. को हुआ था। इनके पिता फौजी में नौकरी करते थ्ो। जब ये पांच साल के थे, तभी पिता का देहांत हो गया था। पिता के बाद चाचा नसरुल्ला बेग खां ने इनकी देखरेख का जिम्मा संभाला। नसरुल्ला बेग आगरा के सूबेदार थे, पर जब लॉर्ड लेक ने मराठों को हराकर आगरा पर अधिकार कर लिया तब पद भी छूट गया। हालांकि बाद में दो परगना लॉर्ड लेक द्बारा इन्हें दे दिए गए।

हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

स्टडी का हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

अब्रॉड स्टडी के मामले में भारतीय छात्रों का मिजाज अब धीरे धीरे बदलता जा रहा है। पहले ज्यादातर छात्र अमेरिका की ओर रुख करते थे, लेकिन अब न्यूजीलैंड भी भारतीय छात्रों का पसंदीदा स्टडी डेस्टिनेशन बनता जा रहा है। इस खूबसूरत देश में विदेशी छात्रों के लिए पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था है। यहां के सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज में टूरिज्म, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटैलिटी, नîसग आदि से जुड़े सर्टिफिकेट व डिप्लोमा प्रोग्राम चलाए जाते हैं। खासबात यह है कि इनकी फीस भी अधिक नहीं होती है।
यह फीस एक वर्षीय डिप्लोमा प्रोग्राम के लिए बिल्कुल ठीक बैठती है। एक दूसरा आसान रास्ता सरकारी अनुदान प्राप्त पॉलिटेक्निक कॉलेज वेलिगटन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और क्राइस्टचर्च पॉलिटेक्निक ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के रूप में हैं। इसके अलावा, कुछ अच्छे प्राइवेट संस्थान भी यहां हंै, जिससे आप वोकेशनल कोर्स कर सकते हैं। नैटकोल भी एक ऐसी ही संस्था है, जो मल्टीमीडिया एवं एनिमेशन में एक जाना पहचान नाम है।
यदि आप न्यूजीलैंड से वोकेशनल कोर्स करना चाहते हैं, तो हम आपको कुछ ऐसे ही इंस्टीट्यूट के बारे में बता रहा है, जिनकी अपनी एक अलग खासियत है।


Friday 20 December 2013

शार्ट कोर्सेस

शॉर्ट में छुपा लांग फ्यूचर

मॉडर्न होते परिवेश में वक्त की शार्टेज सभी के पास है। शायद इसी कमी को भांप कर आज के युवा जल्द ही आत्मनिर्भर होने के जतन करने में लगे हैं। और जो ऐसा नहीं कर रहे वो खुद को मॉर्डन होते इस समाज में पीछे कर रहे हैं। आज का युवा जागरूक हो रहा है। अब वे कॉलेज के साथ-साथ ऐसे कोर्स ढूंढते नजर आते हैं जिन्हें क्वालीफाई कर वे आसानी से पैसे कमा सकें। ऐसे ही कुछ नए शार्ट कोर्सेस आजकल चलन में हैं जिनमें वेब डिजाइनिंग, फोटोग्राफी, कंप्यूटर डिप्लोमा, वीडियो एडिटिंग और रेडियो जॉकी प्रमुख हैं। इनकी स्टडी ड्यूरेशन छह माह से एक साल तक है।
इस तरह के शॉर्ट कोर्सेस करने का फायदा यह है कि आपमें अलग तरह के कार्य को सुगमता पूर्वक कार्य करने की कला का विकास होता है और आप खुद को सैटिस्फाई भी कर पाते हैं। इसके साथ ही आप इस क्षेत्र में भी आसानी से अपने करिअर की राहें तलाश सकते हैं।


क्रांतिकारी संपादक

मुफलिसी में जन्मा क्रांतिकारी


बचपन तो वही होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। बचपन का तो मतलब ही यही होता है जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाए। ऐसा बचपन तो कुछ को ही मिलता है। इस सपनीले बचपन से इतर बचपन गुजरा अमृतसर की सरजमीं पर पैदा हुए महान क्रांतिकारी और संपादक सोहन सिंह का।


गुरबत भरा बचपन

सोहन सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वाभाव के थ्ो। उनमें देशभक्ति और जीवटता कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोहन का जन्म 187० ई. में अमृतसर जिले के एक किसान करम सिंह के यहां हुआ था। एक वर्ष उम्र में ही सोहन के पिता का देहांत हो गया। मुफलिसी के उस दौर में मां रानी कौर ने उनका पालन-पोषण किया। सोहन सिंह बेहद मेहनती, कभी हार न मानने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता थ्ो। बचपन से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई।

बाल विवाह

उस समय देश में बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित थीं। इस प्रथा का शिकार सोहन सिह को भी बनना पड़ा और उनकी दस वर्ष उम्र में ही बिशन कौर के साथ विवाह कर दिया गया। बिशन कौर लाहौर के एक जमींदार कुशल सिह की पुत्री थीं। सोहन सिह ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फारसी में दक्ष थे।


बुरी संगत का असर

कहा जाता है बुरी संगति का असर बुरा ही होता है। और यही हुआ सोहन सिंह के साथ। युवा होने पर सोहन सिह बुरे लोगों की संगत में पड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य कार्यों में गवां दी।
दरिद्रता के दिनों में उनके सभी साथियों ने साथ छोड़ दिया। विद्धानों का कहना है कि जब तक आपके पास धन है तब तक ही आप के दोस्त आपके साथ रहते हैं और धन समा’ होते ही वो भी आपका साथ छोड़ देते हैं। कुछ समय बाद सोहन का संपर्क बाबा केशवसिह से हुआ। उनसे मिलने के बाद ध्यान और योग के माध्यम से शराब व अन्य नश्ो की चीजों को पूरी तरह से छोड़ दिया।


जीविका की खोज

शुरू से ही स्वाभिमानी सोहन ने अपनी आजीविका की खोज में और देश के विकास में योगदान देने की प्रेरणा लिए सन् 19०7 में अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय व अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन के कानों तक भी पहुंच चुकी थी। वहां उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 2०० पंजाब निवासी वहां पहले से ही काम कर रहे थे। कम वेतन और विदेशियों द्बारा अपमान किए जाने से तिलमिलाए सोहन सिंह ने बगावत कर दी। उस बगावत के बाद सोहन का नाम बाबा सोहन सिंह भकना पड़ गया।


क्रांतिकारी संस्था का निर्माण

उस समय देश को आजाद कराने के लिए देश के रणबांकुरों में आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। उन्होंने 'पैसिफिक कोस्ट हिन्दी एसोसिएशन' की स्थापना की। बाबा सोहन सिह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने।

अखबार का संचालन

उस समय देश में लोगों का जागरूक करने का कोई कारगर साधन उपलब्ध नहीं था। अंग्रेजों की काली करतूतों को उजागर करने के लिए 'गदर' नाम के अखबार का प्रकाशन और संपादन किया। गदर की सफलता के बाद 'ऐलाने जंग, 'नया जमाना, जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी '.गदर पार्टी' कर दिया गया। '.गदर पार्टी, के तहत बाबा सोहन सिह ने क्रांतिकारियों को एकत्र करने व हथियारों को भारत भेजने की योजना में बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आजीवन कारावास

क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े होने और प्रथम लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से 13 अक्टूबर, 1914 को कलकत्ता से उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल भ्ोज दिया गया।
बाबा सोहन सिह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की जेल भेज दिया गया। वहां से वे कोयंबटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहां महात्मा गांधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लंबे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
और आज के ही दिन यानी 2० दिसंबर, 1968 को महान क्रांतिकारी बाबा सोहन सिह भकना का देहांत हो गया।




Sunday 15 December 2013

सिंगापुर से शिक्षा

सिंगापुर से सीखें कला के रंग


विदेश में हायर एजूकेशन कंप्लीट करने का सपना लगभग हर टैलेंटेड स्टूडेंट का होता है, लेकिन ये सपने कुछ के ही पूरे हो पाते हैं, क्योंकि जानकारी के अभाव में वह सही टाइम पर अपने भविष्य को लेकर संजोए गए सपने को पूरा करने के लिए इंपार्टेंट डाक्यूमेंट और प्रासेस का फालो नहीं कर पाते, जिस कारण उनके सपनों का आधार भी कमजोर हो जाता है। अगर आपका सपना भी है फारेन में एजूकेशन कंप्लीट करने का तो इसके लिए कमर कस लीजिए। आइए जानते हैं कैसे पाए सिंगापुर में हायर एजूकेशन।
सिगापुर गवर्नमेंट यहां की एजूकेशन सिस्टम को 'ग्लोबल बनाने के लिए सभी जरूरी प्रयास कर रही है। सिगापुर सिर्फ बिजनेस के लिहाज से ही नहीं, बल्कि एजुकेशन के मामले में भी दुनिया की बेस्ट कंट्री में गिना जाने लगा है। इकोनामी के स्टàांग होने के साथ ही यहां की एजूकेशन क्वालिटी और स्टडी सिस्टम भी बेहद मजबूत है। यहां का एंवायरमेंट भी भारतीय छात्रों के लिए काफी फैमिलियर है। यही रीजन है कि यहां आने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

मूल्यांकन

निवेश से पहले मूल्यांकन जरूरी

हर कार्य की शुरुआत करने से पहले जरूरी होता है सही तरीके से उसकी प्लानिंग करना और उसके बाद उसका मूल्यांकन करना। अगर आप घर खरीदने जा रहे हैं तो यह बेहद जरूरी हो जाता है। मकान खरीदने से पहले आवश्यक है कि आप कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गौर फरमाएं। जैसे मकान की लोकेेशन सही जगह है या नहीं। सिक्योरिटी, लिफ्ट, इंडीविजुअल कमरों की लंबाई और चौड़ाई, पार्किंग और सबसे जरूरी आपका अपार्टमेंट लीगल है या नहीं, आदि का विश्ोष ख्याल रखना होता है।