Friday 27 December 2013

मिर्ज़ा ग़ालिब


जाग रहा है गजलकार

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले

हजारों-लाखों शेर लिखने और इससे भी ज्यादा दिलों पर काबिज रहने वाले मिर्जा गालिब उर्फ असदउल्ला खां का जन्म उनके ननिहाल आगरा में 27 दिसंबर, 1797 ई. को हुआ था। इनके पिता फौजी में नौकरी करते थ्ो। जब ये पांच साल के थे, तभी पिता का देहांत हो गया था। पिता के बाद चाचा नसरुल्ला बेग खां ने इनकी देखरेख का जिम्मा संभाला। नसरुल्ला बेग आगरा के सूबेदार थे, पर जब लॉर्ड लेक ने मराठों को हराकर आगरा पर अधिकार कर लिया तब पद भी छूट गया। हालांकि बाद में दो परगना लॉर्ड लेक द्बारा इन्हें दे दिए गए।

हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

स्टडी का हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

अब्रॉड स्टडी के मामले में भारतीय छात्रों का मिजाज अब धीरे धीरे बदलता जा रहा है। पहले ज्यादातर छात्र अमेरिका की ओर रुख करते थे, लेकिन अब न्यूजीलैंड भी भारतीय छात्रों का पसंदीदा स्टडी डेस्टिनेशन बनता जा रहा है। इस खूबसूरत देश में विदेशी छात्रों के लिए पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था है। यहां के सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज में टूरिज्म, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटैलिटी, नîसग आदि से जुड़े सर्टिफिकेट व डिप्लोमा प्रोग्राम चलाए जाते हैं। खासबात यह है कि इनकी फीस भी अधिक नहीं होती है।
यह फीस एक वर्षीय डिप्लोमा प्रोग्राम के लिए बिल्कुल ठीक बैठती है। एक दूसरा आसान रास्ता सरकारी अनुदान प्राप्त पॉलिटेक्निक कॉलेज वेलिगटन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और क्राइस्टचर्च पॉलिटेक्निक ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के रूप में हैं। इसके अलावा, कुछ अच्छे प्राइवेट संस्थान भी यहां हंै, जिससे आप वोकेशनल कोर्स कर सकते हैं। नैटकोल भी एक ऐसी ही संस्था है, जो मल्टीमीडिया एवं एनिमेशन में एक जाना पहचान नाम है।
यदि आप न्यूजीलैंड से वोकेशनल कोर्स करना चाहते हैं, तो हम आपको कुछ ऐसे ही इंस्टीट्यूट के बारे में बता रहा है, जिनकी अपनी एक अलग खासियत है।


Friday 20 December 2013

शार्ट कोर्सेस

शॉर्ट में छुपा लांग फ्यूचर

मॉडर्न होते परिवेश में वक्त की शार्टेज सभी के पास है। शायद इसी कमी को भांप कर आज के युवा जल्द ही आत्मनिर्भर होने के जतन करने में लगे हैं। और जो ऐसा नहीं कर रहे वो खुद को मॉर्डन होते इस समाज में पीछे कर रहे हैं। आज का युवा जागरूक हो रहा है। अब वे कॉलेज के साथ-साथ ऐसे कोर्स ढूंढते नजर आते हैं जिन्हें क्वालीफाई कर वे आसानी से पैसे कमा सकें। ऐसे ही कुछ नए शार्ट कोर्सेस आजकल चलन में हैं जिनमें वेब डिजाइनिंग, फोटोग्राफी, कंप्यूटर डिप्लोमा, वीडियो एडिटिंग और रेडियो जॉकी प्रमुख हैं। इनकी स्टडी ड्यूरेशन छह माह से एक साल तक है।
इस तरह के शॉर्ट कोर्सेस करने का फायदा यह है कि आपमें अलग तरह के कार्य को सुगमता पूर्वक कार्य करने की कला का विकास होता है और आप खुद को सैटिस्फाई भी कर पाते हैं। इसके साथ ही आप इस क्षेत्र में भी आसानी से अपने करिअर की राहें तलाश सकते हैं।


क्रांतिकारी संपादक

मुफलिसी में जन्मा क्रांतिकारी


बचपन तो वही होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। बचपन का तो मतलब ही यही होता है जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाए। ऐसा बचपन तो कुछ को ही मिलता है। इस सपनीले बचपन से इतर बचपन गुजरा अमृतसर की सरजमीं पर पैदा हुए महान क्रांतिकारी और संपादक सोहन सिंह का।


गुरबत भरा बचपन

सोहन सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वाभाव के थ्ो। उनमें देशभक्ति और जीवटता कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोहन का जन्म 187० ई. में अमृतसर जिले के एक किसान करम सिंह के यहां हुआ था। एक वर्ष उम्र में ही सोहन के पिता का देहांत हो गया। मुफलिसी के उस दौर में मां रानी कौर ने उनका पालन-पोषण किया। सोहन सिंह बेहद मेहनती, कभी हार न मानने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता थ्ो। बचपन से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई।

बाल विवाह

उस समय देश में बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित थीं। इस प्रथा का शिकार सोहन सिह को भी बनना पड़ा और उनकी दस वर्ष उम्र में ही बिशन कौर के साथ विवाह कर दिया गया। बिशन कौर लाहौर के एक जमींदार कुशल सिह की पुत्री थीं। सोहन सिह ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फारसी में दक्ष थे।


बुरी संगत का असर

कहा जाता है बुरी संगति का असर बुरा ही होता है। और यही हुआ सोहन सिंह के साथ। युवा होने पर सोहन सिह बुरे लोगों की संगत में पड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य कार्यों में गवां दी।
दरिद्रता के दिनों में उनके सभी साथियों ने साथ छोड़ दिया। विद्धानों का कहना है कि जब तक आपके पास धन है तब तक ही आप के दोस्त आपके साथ रहते हैं और धन समा’ होते ही वो भी आपका साथ छोड़ देते हैं। कुछ समय बाद सोहन का संपर्क बाबा केशवसिह से हुआ। उनसे मिलने के बाद ध्यान और योग के माध्यम से शराब व अन्य नश्ो की चीजों को पूरी तरह से छोड़ दिया।


जीविका की खोज

शुरू से ही स्वाभिमानी सोहन ने अपनी आजीविका की खोज में और देश के विकास में योगदान देने की प्रेरणा लिए सन् 19०7 में अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय व अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन के कानों तक भी पहुंच चुकी थी। वहां उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 2०० पंजाब निवासी वहां पहले से ही काम कर रहे थे। कम वेतन और विदेशियों द्बारा अपमान किए जाने से तिलमिलाए सोहन सिंह ने बगावत कर दी। उस बगावत के बाद सोहन का नाम बाबा सोहन सिंह भकना पड़ गया।


क्रांतिकारी संस्था का निर्माण

उस समय देश को आजाद कराने के लिए देश के रणबांकुरों में आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। उन्होंने 'पैसिफिक कोस्ट हिन्दी एसोसिएशन' की स्थापना की। बाबा सोहन सिह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने।

अखबार का संचालन

उस समय देश में लोगों का जागरूक करने का कोई कारगर साधन उपलब्ध नहीं था। अंग्रेजों की काली करतूतों को उजागर करने के लिए 'गदर' नाम के अखबार का प्रकाशन और संपादन किया। गदर की सफलता के बाद 'ऐलाने जंग, 'नया जमाना, जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी '.गदर पार्टी' कर दिया गया। '.गदर पार्टी, के तहत बाबा सोहन सिह ने क्रांतिकारियों को एकत्र करने व हथियारों को भारत भेजने की योजना में बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आजीवन कारावास

क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े होने और प्रथम लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से 13 अक्टूबर, 1914 को कलकत्ता से उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल भ्ोज दिया गया।
बाबा सोहन सिह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की जेल भेज दिया गया। वहां से वे कोयंबटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहां महात्मा गांधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लंबे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
और आज के ही दिन यानी 2० दिसंबर, 1968 को महान क्रांतिकारी बाबा सोहन सिह भकना का देहांत हो गया।




Sunday 15 December 2013

सिंगापुर से शिक्षा

सिंगापुर से सीखें कला के रंग


विदेश में हायर एजूकेशन कंप्लीट करने का सपना लगभग हर टैलेंटेड स्टूडेंट का होता है, लेकिन ये सपने कुछ के ही पूरे हो पाते हैं, क्योंकि जानकारी के अभाव में वह सही टाइम पर अपने भविष्य को लेकर संजोए गए सपने को पूरा करने के लिए इंपार्टेंट डाक्यूमेंट और प्रासेस का फालो नहीं कर पाते, जिस कारण उनके सपनों का आधार भी कमजोर हो जाता है। अगर आपका सपना भी है फारेन में एजूकेशन कंप्लीट करने का तो इसके लिए कमर कस लीजिए। आइए जानते हैं कैसे पाए सिंगापुर में हायर एजूकेशन।
सिगापुर गवर्नमेंट यहां की एजूकेशन सिस्टम को 'ग्लोबल बनाने के लिए सभी जरूरी प्रयास कर रही है। सिगापुर सिर्फ बिजनेस के लिहाज से ही नहीं, बल्कि एजुकेशन के मामले में भी दुनिया की बेस्ट कंट्री में गिना जाने लगा है। इकोनामी के स्टàांग होने के साथ ही यहां की एजूकेशन क्वालिटी और स्टडी सिस्टम भी बेहद मजबूत है। यहां का एंवायरमेंट भी भारतीय छात्रों के लिए काफी फैमिलियर है। यही रीजन है कि यहां आने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

मूल्यांकन

निवेश से पहले मूल्यांकन जरूरी

हर कार्य की शुरुआत करने से पहले जरूरी होता है सही तरीके से उसकी प्लानिंग करना और उसके बाद उसका मूल्यांकन करना। अगर आप घर खरीदने जा रहे हैं तो यह बेहद जरूरी हो जाता है। मकान खरीदने से पहले आवश्यक है कि आप कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गौर फरमाएं। जैसे मकान की लोकेेशन सही जगह है या नहीं। सिक्योरिटी, लिफ्ट, इंडीविजुअल कमरों की लंबाई और चौड़ाई, पार्किंग और सबसे जरूरी आपका अपार्टमेंट लीगल है या नहीं, आदि का विश्ोष ख्याल रखना होता है।


Monday 4 November 2013

अवाज के जादूगर


एक समय ऐसा समय था जब पूरे देश में रेडियो का चलन था। हमेशा से रेडियो का आम इंसान की जिदगी में एक अहम स्थान था, और सेलिब्रेटी भी रेडियो से बड़े शौक से जुड़ते थे। फिर वह समय भी आया जब टीवी और इंटरनेट ने अपनी-अपनी पहचान बना ली। घरों में रेडियो की जगह टेलीविजन ने ले ली और रेडियो की लोकप्रियता घटने लगी।

रोमांचकारी कार्य

हर क्ष्ोत्र में एक समय ऐसा आता है जिसमें उसके प्रति बदलाव का नया दौर चलता है और उसमें नई -नई चीजों का जुड़ाव व अलगाव होता है, ठीक बिल्कुल ऐसा ही हुआ रेडियो इंडस्ट्री में भी हुआ। एफएम रेडियो के आगमन के साथ ही रेडियो में भी क्रांति आई। एफएम रेडियो ने लोगों की बदलती पसंद को जाना और पुराने ढररे के संगीत को बदलकर नये संगीत को नये तरीके से लोगों के सामने पेश किया। एफएम रेडियो में रेडियो जॉकी ने अपनी अलग और प्रभावी पहचान बनाई।
एक आरजे को लाइव प्रोग्राम के दौरान श्रोताओं से उनकी रुचि के अनुरूप बातें करनी होती हैं और उनकी पसंद का गीत भी सुनाना होता है। इसके अलावा सेलिब्रेटी से इंटरव्यू, नए कॉन्टेस्ट और म्यूजिक इंफोर्मेशन जैसी चीजें भी आरजे के कार्यों में प्रमुखता से शामिल होती है।

संगीत के साथ संभावनाओं का सागर

देश में 1०० से भी ज्यादा प्राइवेट एफएम रेडियो स्टेशन मौजूद हैं जबकि आने वाले समय भारत सरकार ने 5० से भी ज्यादा नये एफएम स्टेशंस व कम्यूनिटी रेडियो को चालू करने की योजना बनाई है, जोकि इस क्ष्ोत्र में अपार संभावनाओं के दरवाजे खुलने को तैयार हैं। आज स्थिति यह है कि मल्टीनेशनल कंपनी, बड़ी इंडस्ट्री से लेकर छोटे उद्योग भी एफएम रेडियो को अपने प्रचार का मुख्य जरिया माने जा रहे हैं। एफएम रेडियो के क्षेत्र में यह केवल शुरुआत है और इसमें अपार संभावनाएं हैं। संगीत में रुचि रखने वालों के लिए आरजे बनने के रास्ते खुले हैं।

 

Thursday 31 October 2013

फ्यूचर का इंश्योरंस

आज हर किसी को अपने ब्राइट फ्यूचर की चिंता सताती है। भविष्य में उनके पास पैसे रहेंगे या नहीं इस बात का डर लगभग हर व्यक्ति को होता है। इसलिए वहां जरूरत होती हैं इंश्योरेंस की। आज हर क्ष्ोत्र में हर किसी वस्तु का इश्योरेंस किया जा रहा है। क्योंकि हर व्यक्ति खुद को सिक्योर रखना चाहता है। इसी वजह से आज इंश्योरेंस का प्रोफेशन हर पल प्रगति कर रहा है। इस क्षेत्र में ट्रेंड प्रोफेशनल्स की बहुत मांग है।

 

Saturday 26 October 2013

राइट योर ओन कैरियर


राईटिंग कई तरह की हो सकती है। यह क्रिएटिव या डायरेक्ट राइटिग भी हो सकती है। सच पूछिए, तो लिखने की कला हर किसी में नहीं होती है। और जिनमें लिखने की जिज्ञासा है या वे लिखने में हुनरमंद हैं, तो आज उनके लिए जॉब की कोई कमी भी नहीं है, क्योंकि आज कॉपी राइटिग, क्रिएटिव राइटिग, टेक्निकल राइटिग के क्षेत्र में लिखने में हुनरमंद लोगों की खूब डिमांड है।

 

Sunday 13 October 2013

बापू हमारे आंखों के प्यारे

एक मोहन जो बना महात्मा


सत्याग्रह, अहिसा और सादगी को मूल मंत्र मानने वाले महात्मा गांधी जी का आज जन्म दिन है। उन्होने देश के लिए बलिदान दिया। उनके आदर्शों से प्रभावित होकर रबिद्रनाथ टैगोर ने पहली बार उन्हें महात्मा के नाम से संबोधित किया। गांधी जी ने अपना जीवन सत्य की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया था। अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं अपनी गलतियों पर प्रयोग करना प्रांरभ किया। अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी आत्मकथा 'माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ में संकलित किया था।

शुरूआती जीवन और शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्तूबर सन 1869 को पोरबंदर (गुजरात) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे। मोहनदास की मां पुतलीबाई का स्वभाव धार्मिक प्रवत्ति का था। गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। वह गणित विषय में बेहद कमजोर व शर्मील और एकांतप्रिय स्वाभाव के मगर गंभीर व्यक्ति त्व के पुरुष थ्ो।

नकल से घृणा

एक बार विद्यालय में घटी एक घटना ने यह संदेश अवश्य दे डाला कि निकट भविष्य में यह छात्र आगे जरूर जाएगा। घटना के अनुसार उस दिन स्कूल निरीक्षक विद्यालय में निरीक्षण के लिए आए हुए थे। कक्षा में उन्होंने छात्रों की 'स्पेलिग टेस्ट लेनी शुरू की। मोहनदास शब्द की स्पेलिग गलत लिख रहे थे, इसे कक्षाध्यापक ने संकेत से मोहनदास को कहा कि वह अपने पड़ोसी छात्र की स्लेट से नकल कर सही शब्द लिखें। उन्होंने नकल करने से इंकार कर दिया। क्योंकि वह को जीवन की प्रगति में बाधक मानते थ्ो।

पश्चाताप गलतियों की माफी है

वैसे तो मोहनदास आज्ञाकारी थे, पर उनकी दृष्टी में जो अनुचित था, उसे वे उचित नहीं मानते थे। बचपन में मोहनदास बुरी संगत के कारण अवगुणों में डूब गए। धूम्रपान और चोरी करने का भी अपराध किया। लेकिन बाद में गलती को स्वीकार करते हुए उन्होंने सारी बुरी आदतों से किनारा कर लिया। उनका मानना था कि अगर सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।

बाल विवाह प्रगति में अवरोध

तेरह वर्ष की आयु में मोहनदास का विवाह कस्तूरबा से कर दिया गया। उस उम्र के लड़के के लिए शादी का अर्थ नए वत्र, फेरे लेना और साथ में खेलने तक ही सीमित था। लेकिन जल्द ही उन पर काम का प्रभाव पड़ा। शायद इसी कारण उनके मन में बाल-विवाह के प्रति कठोर विचारों का जन्म हुआ। उन्होनें बाल-विवाह को भारत की एक भीषण बुराई मानते थे। उनका मानना था कि बचपन में ही विवाह किए जाने से जीवन के प्रगति का पथ अवरोधों से भर जाता है। बाल विवाह भारत में रोकना बेहद जरूरी है।

मेरी देह देश की और देश मेरी देह का

गांधीजी ने हमेशा दूसरों के लिए ही संघर्ष किया। मानो उनका जीवन देश और देशवासियों के लिए ही बना था । इसी देश और उसके नागरिकों के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया। वे स्वयं को सेवक और लोगों का मित्र मानते थे। यह महामानव कभी किसी धर्म विशेष से नहीं बंधा शायद इसीलिए हर धर्म के लोग उनका आदर करते थे ।
वे जीवनभर सत्य और अहिसा के मार्ग पर चलते रहे। उनका मानना था कि कोई व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता। कर्म के आधार पर ही व्यक्ति महान बनता है। उन्होंने सत्य, प्रेम और अंहिसा के मार्ग पर चलकर यह संदेश दिया कि आदर्श जीवन ही व्यक्ति को महान बनाता है ।
मोहनदास से महात्मा और महात्मा से बापू बने उस शख्स ने यह सिद्ध कर दिखाया कि दृढ़ निश्चय, सच्ची लगन और अथक प्रयास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।




Sunday 29 September 2013

हमारे राधाकृष्णन



डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन


भारत के तमिलनाडु में चेन्नई के पास एक छोटे से गांव तिरूतनी में सन् 1888 को एक गरीब ब्राहमण परिवार में हुआ था। विद्बान और दार्शनिक डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी थे। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली रामास्वामी था और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में कार्यरत थ्ो। राधाकृष्णन के पांच भाई और एक बहन थी। माना जाता है कि राधाकृष्णन के पुरखे सर्वपल्ली नामक ग्राम के रहने वाले थ्ो। इसीलिए उन्होने अपने ग्राम को सदैव याद रखने के लिए नाम के आगे सर्वपल्ली प्रयोग करना शुरू किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह अति सुंदर व सुशील ब्राहम्ण कन्या शिवकामु के साथ संपन्न हुआ था। राधाकृष्णन के परिवार में पांच पुत्र व एक पुत्री थी। 

प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा

डॉ. राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा वेल्लूर के एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की डिग्री प्रा’ की। सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। 12 वर्ष की छोटी उम्र में ही राधाकृष्णन ने बाईबिल के कई अध्यायों को याद कर लिया था। इसके लिए उन्हें उनका पहला 'विश्ोष योग्यता सम्मान’ प्रदान किया गया था। उन्होनें मैट्रिक की प्ररीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी। राधाकृष्णन की प्रतिभा के कारण उन्हें मद्रास स्कू ल द्बारा छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई थी। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनोखी प्रतिभा के धनी व उच्च कोटि के छात्र थ्ो। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का व्यक्तित्व

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बचपन की पढ़ाई-लिखाई एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी, और उस समय पश्चिमी जीवन मूल्यों को विद्यार्थियों में गहरे तक स्थापित किया जाता था। यही कारण है कि क्रिश्चियन संस्थाओं में अध्ययन करते हुए राधाकृष्णन के जीवन में उच्च गुण समाहित हो गए। और वह परंपरागत तौर पर ना सोच कर व्यहारिकता की ओर उन्मुख हो गए थे। शिक्षा के प्रति रुझान ने उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया था। डॉ.राधाकृष्णन बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही देश की संस्कृति को प्यार करने वाले व्यक्ति भी थे।

सीधा-सरल चरित्र

डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था। उनका व्यक्तित्व व चरित्र बेहद सीधा और सरल था। वो जमीनी बातों पर ज्यादा गौर करते थ्ो। उनका कहना था कि ''चिड़िया की तरह हवा में उड़ना और मछली की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें मनुष्य की तरह जमीन पर चलना सीखना है। 'मानवता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने यह भी कहा, 'मानव का दानव बन जाना, उसकी पराजय है, मानव का महामानव होना उसका एक चमत्कार है और मानव का मानव होना उसकी विजय है’। वह अपनी संस्कृति और कला से लगाव रखने वाले ऐसे महान आध्यात्मिक राजनेता थे जो सभी धर्मावलम्बियों के प्रति गहरा आदर भाव रखते थे। 

जिम्मदारियां व पद्भार

सन् 1949 से सन 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान माना जाता है। सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्बितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की। डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आप को शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। 

डॉ. राधाकृष्णन को दिए गए सम्मान

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की तरह कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण उपाधियों पर रहते हुए भी उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था। राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्बारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई संप्रदाय के व्यक्ति थे। उन्हें आज भी शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन का निधन

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने वाले इस महापुरूष को वृद्धावस्था के दौरान बीमारी ने अपने चंगुल में जकड़ लिया। 17 अप्रैल, 1975 को 88 वर्ष की उम्र में इस महान दार्शनिक,लेखक , शिक्षाविद ने इस नश्वर संसार को अलविदा कह दिया।





 

Tuesday 17 September 2013

डिजिटल हुआ यंगिस्तान


आजकल युवाओं को गैजेट मनिया नाम का रोग लग चुका है। गैजेट मनिया मतलब नई टेक्नोलाजी के गैजेट्स के प्रयोग के प्रति हद से ज्यादा पागलपन। भावी युवा पीढ़ी रोज-रोज नई तकनीकी से रूबरू हो रही है। युवा आज पहले से ज्यादा टेक सेवी होता जा रहा है। इसका कारण सिर्फ कम समय में अपनी रोजाना बढ़ रही महत्वाकांछाओं को पूरा करने की मानसिकता भर है। टीसीएस सर्वे 2०12-13 के अनुसार भारत की माडर्न युवा पीढèी अपनी पहले की पीढèी को काफी पीछे छोड़ते हुये फेसबुक और ट्वीटर, याहू, जीमेल, गूगल प्लस जैसे सोशल नेटवर्क्स को संचार साधन के रूप में उपयोग कर रही है।
14 भारतीय शहरों के लगभग 17,5०० हाईस्कूल विद्यार्थियों पर किए गए टीसीएस सर्वे यह साफ करता है कि स्मार्ट डिवाइसेज एवं ऑनलाइन एक्सेस के अभूतपूर्व स्तर ने इस पीढèी को बहुत अधिक संपर्कशील बना दिया है। इससे इनके एक-दूसरे से किए जाने वाले संचार के तरीकों में बड़ा बदलाव हो रहा है, साथ ही साथ इससे इनके शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन दोनो में कायापलट होने लगा है।

 

Friday 13 September 2013

दैत्याकार शिकारी डायनासोर






डायनासोर हमेशा से ही मानव जाति के लिए जिज्ञासा और कौतूहल का विषय रहे हैं। इनके अस्तित्व को जीव विज्ञानियों ने कभी नकारा नहीं है। समय-समय पर वैज्ञानिकों को मिले इनके जीवाश्म धरती पर इनके अस्तित्व को पुख्ता करते हंै। डायनासोर देखने में बेहद खूंखार, बड़े से बड़े जीव को भी अपने पंजों में दबाकर उड़ने की ताकत रखने वाले दैत्याकार डायनासोर की कल्पना आज भी हमारे शरीर में सिहरन पैदा कर देती है।
डायनासोर का मतलब होता है दैत्याकार छिपकली। ये छिपकली और मगरमच्छ कुल के जीव थे। करीब 25 करोड़ वर्ष पूर्व जिसे जुरासिक काल कहा जाता है। 6 करोड़ वर्ष पूर्व क्रेटेशियस काल के बीच पृथ्वी पर इनका ही साम्राज्य माना जाता था। उस काल में इनकी कई प्रजातियां पृथ्वी पर पाई जाती थीं। इनकी कुछ ऐसी प्रजातियां भी थीं, जो पक्षियों के समान उड़ती थीं। ये सभी डायनासोर सरिसृप समूह के जीव थे। इनमें कुछ छोटे डायनासोर थ्ो जिनकी लंबाई 4 से 5 फीट थी। तो कुछ विशालकाय 5० से 6० फीट लंबे थे।


Thursday 8 August 2013

इक हसीन मुलाकात





फिल्म 'रब्बा मैं क्या करु की नायिका ताहिरा कोचर से खास बातचीत:


सबसे पहले अपने बारे में बताएं?

 

-मैं दिल्ली की ही रहने वाली हूं। मेरी शिक्षा दिल्ली में ही हुई। ब्रिटिश स्कूल से स्कूली पढ़ाई की। बिजनेस पीआर और एडवरटाइंिजग में डिप्लोमा हासिल किया। स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद मॉडलिंग करनी शुरू कर दी थी। मैं 'फेमिना मिस इंडिया 2०1०’ की टॉप 2० फाइनालिस्टों मंे थी। पर अभिनय करना तो मेरा बचपन का सपना रहा है। माधुरी दीक्षित मेरी आदर्श हैं। अब फिल्म 'रब्बा मैं क्या करूं’ में अभिनय करने से मेरा बचपन का सपना पूरा हुआ है।

फिल्म''रब्बा मैं क्या करूं’’में अभिनय करने का मौका कैसे मिला?


-'फेमिना मिस इंडिया 2०1०’की टॉप 2० फाइनलिस्ट चुने जाने के बाद से मेरे पास फिल्मों के ऑफर आने लगे थे। पर मैं अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी। इसलिए मैंने उन ऑफर पर ध्यान नहीं दिया। मेरे पास दो तीन बार फिल्म 'रब्बा मैं क्या करूं’ के सहायक निर्देशक का भी फोन आया, पर मंैने उन्हें मना कर दिया था। क्योंकि उस वक्त मेरा पूरा ध्यान पढ़ाई पर था। लेकिन एक दिन फिल्म के निर्देशक अमृत सागर खुद दिल्ली आए। उन्होंने मुझे फोन किया। पता नहीं क्यों मैं उनको मना नहीं कर पायी और मैं ऑडीशन देने पहुंच गयी। यह ऑडीशन दिल्ली मंे ही हुआ था और मुझे फिल्म 'रब्बा मैं क्या करुं ’ की नायिका बना दिया गया।

अभिनय की कोई ट्रेनिंग ली?


-नहीं, शूटिंग से पहले सिर्फ दस दिन का वर्कशॉप किया। स्कूल दिनांे में डांस व अभिनय करती रही हूं।

फिल्म के अपने पात्र को लेकर क्या कहेंगी?


-मैंने इसमें भावुक लड़की ·ेहा मल्होत्रा का पात्र निभाया है, जो कि साहिल की बचपन की पे्रमिका है। उसके óिए रिश्ते बहुत मायने रखते हैं।
लेकिन अभिनय कैरियर की शुरूआत नवोदित अभिनेता आकाश चोपड़ा के साथ करते हुए रिस्क नहीं लगा?
-कैसी रिस्क इस फिल्म में आकाश चोपड़ा के अलावा अरशद वारसी, राज बब्बर, परेश रावó, शक्ति कपूर जैसे महारथी कलाकार हैं। पहली ही फिल्म में इतने महारथी कलाकारों के साथ काम करना बहुत बड़ी अहमियत रखता है। मुझे इन सभी कलाकारों से बहुत कुछ सीखने को मिला।

फिल्म में काम करने के अनुभव कैसे रहे?


-ईमानदारी की बात है कि मेरे अनुभव बहुत अच्छे रहे। सेट पर मैं सबसे छोटी थी। सभी कलाकारों ने मेरा हौसला बढ़ाया। मुझे सलाह दी, मुझे राह दिखायी। फिल्म के निर्देशक अमृत सागर के साथ काम करते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा। मैं तो पिछले दो साल से इस फिल्म के साथ जुड़ी हुई हूं। निजी स्तर पर अब मुझे लगता है कि मैं कितनी मैच्योर हो गयी हूं। मैंने काम, प्रोफेशनलिजम, अनुशासन सब कुछ सीख लिया है। वैसे तो आर्मी की बैकग्राउंड होने की वजह से मेरी परवरिश बहुत अनुशासित ढंग से हुई है। पर फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा। फिल्म 'रब्बा मैं क्या करूं’ करते हुए मैंने 'पैशन’ रखना सीखा।

भविष्य की योजना ?


-अभिनय ही करना है। कुछ फिल्मों के आफर हैं, मगर मुझे ' रब्बा क्या करुं ’ के प्रदर्शन का इंतजार है। अब मुझे हर हाल में सफल अभिनेत्री बनना ही बनना है।

 

एक स्वप्नपरी का साछात्कार




किरदार पर निर्भर करती है केमेस्ट्री: सोनम कपूर


क्या 'रांझणा’ में एक स्कूली लड़की का रोल निभाना मुश्किल रहा?


यह मुश्किल तो नहीं था पर मैं इस रोल को लेकर थोड़ी नर्वस थी। जब हम बनारस में शूटिंग कर रहे थे तो करीब दो हजार लोग शूटिंग देखने के लिए जमा हो गए थे। इस रोल में मैंने स्कूली लड़की की ड्रेस पहनी थी और दो चोटियां बनाई थीं, और सेट के आसपास बहुत सारे लोगों को देखकर मेरा नर्वस होना स्वाभाविक था।

क्या कम उम्र का नजर आने के लिए आपने कोई खास तैयारी की?


खुशकिस्मती से मैं बिना मेकअप के स्कूली लड़की ही नजर आती हूं। इस मामले में मैं अपने डैडी की तरह हूं। मैं इतना जरूर कहूंगी कि शूटिंग के वो 15-2० दिन मेरे लिए बहुत यादगार रहे।

क्या आपने इस रोल की तैयारी के लिए जया बच्चन की फिल्म 'गुXी’ को देखा था?


हां--स्कूल गर्ल के पार्ट के लिए मैंने ऐसा किया था। मुझे वो सीन बहुत पसंद आया जब गुXी स्कूल प्रेयर के लिए देर से पहुंचती है और स्कूल टीचर उसे सजा देती हैं और वे मिलेजुले भाव व्यक्त करती हैं। नटखटपन और मासूमियत का यह मेल बहुत अच्छा था।

आपको अपने स्कूल के दिन भी जरूर याद आए होंगे। आपका स्कूली जीवन कैसा था?


हमारा स्कूल दूसरे स्कूलों जैसा ही था। मेरा स्कूल ऐसा ही था जैसा इस फिल्म में मेरे कैरेक्टर जोया का है।

कोस्टार धनुष के साथ आपकी केमिस्ट्री के बड़े चर्चे हैं।


यह अच्छी बात तो है लेकिन इससे डर भी लगता है। अच्छी केमिस्ट्री इस बात पर निर्भर करती है कि आपके किरदार कैसे हैं। हमारी केमिस्ट्री इतनी अच्छी नहीं होती अगर हम लोग अलग-अलग निर्देशकों के साथ काम करते। शाहिद कपूर और करीना कपूर को ही ले लीजिए, उन्होंने कई फिल्मों में काम किया है, लेकिन फि ल्म 'जब वी मेट’ में उनकी केमस्ट्री कमाल की है। इसका श्रेय निर्देशक इम्तियाज अली को जाता है।

केमिस्ट्री अपनी एक्टिंग के जरिए भी कायम की जा सकती है।


केमिस्ट्री के बारे मंे कुछ नहीं कहा जा सकता। अभिषेक बच्चन के साथ मुझे 'दिल्ली 6’ में तो पसंद किया गया लेकिन 'प्लेयर्स’ मंे यह बात काम नहीं आई।

आपने एक ऐसी अभिनेत्री की छवि बना ली है जो डिफरेंट रोल करना चाहती है, भले ही वो कॉमर्शियल एंगल से उतने कामयाब नहीं हों। क्या यह बात सही है?


मेरे जीवन में कॉमर्शियल रेशियो के लिए कोई जगह नहीं है। मैं अलग-अलग रोल करना चाहती हूं। यह अच्छा है कि मैं अभी टाइपकास्ट नहीं हूं। फिल्मकार मुझे अलग-अलग रोल दे रहे हैं। आनंद राय सर ने भी जोया के रोल के लिए किसी और के नाम पर विचार नहीं किया।

लेकिन ऐसी भी चर्चा रही कि आप इस फिल्म के लिए उनकी पहली पसंद नहीं थीं?


यह सही नहीं है। दूसरी अभिनेत्री की पीआर मशीनरी इस तरह की बातें फैला रही हैं। मैं इस रोल के लिए शुरू से ही पहली पसंद थी। मैं जिस फिल्म के लिए ना कह देती हूं कभी उसकी चर्चा नहीं करती। मैं इस बारे में कोई चर्चा नहीं करती क्योंकि मैं अपने निर्देशक, निर्माता और साथी कलाकारों का सम्मान करती हूं।

क्या आपको 'प्लेयर्स, थैंकयू, मौसम’ जैसी फिल्में करने का अफसोस है?


मुझे किसी बात का अफसोस नहीं है। मुझे तो लगता है कि मौसम को अच्छा रिस्पांस मिला है। मेरा मानना रहा है कि मुझे ऐसी फिल्में करनी चाहिए जो मुझे अच्छी लगती हैं, न कि ऐसी फिल्में जिन्हें लोग पसंद करते हैं। आपकी फिल्म चले या नहीं चले पर यह जरूरी है कि आपको लोग याद रखें। मैं ऐसी फिल्मांे के साथ-साथ कॉमर्शियल फिल्में भी करना चाहती हूं।

तो आप दोनों तरह के सिनेमा का हिस्सा बनना चाहती हैं?


दोनों तरह के सिनेमा का हिस्सा बनना कोई आसान नहीं है। थोड़ा और अनुभव हो जाए तो मैं दोनों तरह की फिल्में कर सकती हूं।

'आयशा’ के बाद अभय देओल के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?


अभय बहुत अच्छे दोस्त हैं। वे कुछ मामलांे में मेरे डैडी से सहमत नहीं हैं, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है। मुझे पता है कि उनके जीवन में क्या चल रहा है। इसी तरह उन्हें मेरे बारे में सब कुछ पता है। अगर मुझे उनके साथ कोई दिक्कत होती तो मैं उनके साथ काम नहीं कर पाती। मैं इस मामले में एकदम ईमानदार हूं।

क्या इस रोल के लिए आपने अपनी पर्सनल लव लाइफ से भी कुछ प्रेरणा ली है?


अभी तक तो मेरी लव लाइफ नाकाम ही रही है। लेकिन हम लोग ऐसे ही होते हैं जो पूरे जीवन में सब लोगों को प्यार बांटते चलते हैं। फिल्म में ऐसे ही जज्बात दिखाए गए हैं।





 

Wednesday 31 July 2013

एक क्लिक और दुनिया मुट्ठी में



वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी : रोमांच को करें कैमरे में कै



कहा जाता है कि एक फोटो दस हजार शब्दों के बराबर होती है। फोटोग्राफी एक कला है जिसमें विजुअल कमांड के साथ-साथ टेक्नीकल नॉलेज भी जरूरी है। फोटोग्राफी एक बेहतर क रिअर ऑप्शन साबित हो सकता है उन सभी छात्रों के लिए जिन्हे नेचर से प्यार है। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी एक ऐसी ही फील्ड है जहां एक तरफ घने जंगलों के बीच खूàंखार जानवरों को अपने कैमरे में कैद करने व उनके अलग-अलग मूवमेंट्स को दुनिया के सामने लाने का रोमांच है तो वहीं दूसरी तरफ इस क्ष्ोत्र में खतरे भी कम नहीं हैं।
आज सरकार व सामाजिक संगठनों द्बारा वन्य जीवों के जीवन को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की वजह से यह क्ष्ोत्र रोजगार की दृष्टि से नये रास्ते खोलने वाला साबित हुआ है। अगर आपकी तमन्ना भी है खतरनाक जानवरों को पास से देखने की और दुनिया को दिखाने की तो आपके लिए यह निसंदेह बेहतर करिअर ऑप्शन साबित हो सकता है।

क्रि एटीविटी व अवसरों से भरा करिअर

फोटोग्राफी के इस क्षेत्र में जानवरों, पक्षियों, जीव-जंतुओं की तस्वीरें ली जाती हैं। एक नेचर फोटोग्राफर ज्यादातर कैलेंडर, कवर, रिसर्च इत्यादि के लिए काम करता है। नेचर फोटोग्राफर के लिए रोमांटिक सनसेट, फूल, पेड़, झीलें, झरना इत्यादि जैसे कई आकर्षक टॉपिक हैं।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी को करिअर के तौर पर चुनने से पहले वाइल्ड लाइफ के रूल्स एंड रेगुलेशंस की इंफार्मेशन होना भी बेहद जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है आपकी क्रिएटिविटी। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी में करिअर को स्टैब्लिश करने के लिए बहुत ज्यादा स्ट्रगल करना होता है, लेकिन इस क्ष्ोत्र में रोजगार के अवसरों की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का क्ष्ोत्र रोमांच से भरा हुआ है।
 

चुनौतियां भी कम नहीं

इस क्षेत्र में पेशेंस की बेहद जरूरत होती है, क्योंकि यहां आने के बाद आप अपने मनमुताबिक नहीं चल सकते। कई बार भयानक जंगल में रात में भी फोटोग्राफी करनी पड़ सकती है। क्योंकि कई विलु’ प्रजाति के वन्यजीव अपनी आदत के मुताबिक रात में ही बाहर निकलते हैं। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है खुद को अपडेट करते रहने की। आपको फोटोग्राफी के नए-नए टूल्स और लेंसों से खुद को अवेयर रखना होता है। फोटो कैप्चर करने के लिए सही एंगल का चुनाव भी बेहद जरूरी है। अच्छी फोटो के लिए इंतजार भी एक इस फील्ड में नाम कमाने को अहम हिस्सा है, जो एक दिन से लेकर सालों का हो सकता है। सफल वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है अच्छी आंख, जो प्रकृति की सुंदरता पहचान सके।
 

प्रवेश योग्यता

फोटोग्राफी एक क्रिएटिव क्ष्ोत्र है जिसमें वर्तमान में बेहतर करिअर की संभावनाएं मौजूद हैं। बारहवीं या ग्रेजुएशन करने के बाद इस क्षेत्र में प्रवेश लिया जा सकता है। फोटोग्राफी का कोर्स सरकारी और निजी स्तर पर कई संस्थान कराते हैं। एक अच्छा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनने के लिए बेसिक फोटोग्राफी की जानकारी होना बेहद जरूरी है। हालांकि एक साधारण डिजिटल कैमरा लेकर शौकिया तौर पर शुरुआत की जा सकती है। एक-दो साल का अनुभव हो जाने के बाद डिजिटल एसएलआर खरीद कर प्रोफेशनली इस क्षेत्र में एंट्री की जा सकती है।
 

कोर्स एक रास्ते अनेक

देशी-विदेशी वाइल्ड लाइफ और नेचर मैगजीनों में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफ्स की मांग हमेशा बनी रहती है। इसके अलावा वन्य जीवों पर काम करने वाले कई संस्थान भी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स को हॉयर करते हैं। नेशनल ज्योग्राफिक, डिस्कवरी और एनीमल प्लेनेट जैसे चैनल भी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स को फोटोग्राफ्स के लिए अप्वाइंट करते हैं।
फ्रीलांसर कॉरपोरेट, वाइल्ड लाइफ मैगजीन्स, नेचर-वाइल्ड लाइफ प्रोड्यूसर्स और टीवी चैनलों के साथ फ्रीलांस के तौर पर भी जुड़ा जा सकता है।
 

सैलरी पैकेज

अभी तक यह क्षेत्र हमारे देश में ज्यादा फेमस नहीं था तो कमाई के साधन भी सीमित थे, लेकिन ग्लोबलाइजेशन के बाद अब इस क्षेत्र में अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। किसी संस्थान से जुड़ने पर आसानी से 1० से 2० हजार रुपए प्रतिमाह की कमाई हो सकती है। एक अनुभवी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर प्रतिमाह आसानी से एक लाख रुपए कमा सकता है। इसके अलावा कुछ सीनियर फोटोग्राफर्स भी अपने असिस्टेंट रखते हैं, जो न केवल सिखाते हैं बल्कि 1० से 12 हजार रुपए का स्टाइपेंड भी देते हैं।

कोर्स और संस्थान

किसी भी सरकारी या निजी संस्थान से फोटोग्राफी का कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है। हालांकि भारत में अभी इस क्षेत्र के लिए कोई स्पेशलाइज्ड कोर्स उपलब्ध नहीं है। फोटोग्राफी में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट दो तरह के कोर्स कराए जाते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर डेवलेपमेंट इन एजुकेशन एंड एडवांस्ड स्टडीज, अहमदाबाद
कॉलेज ऑफ आर्ट्स, तिलक मार्ग, दिल्ली
एजेके मास कम्युनिकेशन सेंटर, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद,
सेंटर फॉर रिसर्च इन आर्ट ऑफ फिल्म्स ऐंड टेलीविजन नई दिल्ली
दिल्ली स्कूल ऑफ फोटोग्राफी
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फोटोग्राफी, मुंबई



 

Monday 29 July 2013

शादी की खबरें हैं झूठी

उदय चोपडा और मेरी शादी की खबरें झूठी हैं - नरगिस फाखरी

ब्लैक गाउन में बैठी नरगिस से जब हम उनकी फिल्म 'मद्रास कैफे’ के सिलसिले में मिले तो उन्होंने हिदी को लेकर परेशानी जताई। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि लोगों को फटाफट हिदी में बात करते देख उनकी भी मंशा है कि वह जल्द हिदी में बात करें। फिलहाल इसके लिए वह काफी प्रयत्न भी कर रही हैं। मजे की बात यह है कि हिदी ना आने के बावजूद कैटरीना के नक्शे कदम पर चलती नरगिस ने फिल्म में अपने डायलाग्स खुद बोले हैं। फिलहाल प्रस्तुत है मजाकिया लहजे के साथ एक अलग अंदाज में नरगिस से हुई बातचीत के कुछ अंश।

मद्रास कैफे के बारे में क्या कहेंगी?

मद्रास कैफे एक बेहतरीन फिल्म है। अगर मैं यह कहूं तो कतई गलत नहीं होगा कि लंबे अर्से से मैं एक ऐसी ही फिल्म से जुड़ना चाहती थी जो रियल हो और रियलिस्टिक सब्जेक्ट पर हो। मुझे लगता है 'मद्रास कैफे’ से बेहतर कुछ और नहीं है। जब सुजित सर मेरे पास इस फिल्म को लेकर आए तो मैंनें कहानी सुनते ही उन्हें हां कर दिया और अपने किरदार की तैयारी में लग गई।
इस फिल्म में आप एक वॉर जर्नलिस्ट बनी हैं उसका अनुभव ?
मैं समझती हूं जर्नलिस्ट का काम अपने आप में काफी कठीन होता है उस पर अगर आप वार जर्नलिस्ट हैं तब तो समझिए हर समय आपको जान हथेली पर लेकर चलना होगा। एक तरफ बम के धमाके हैं तो दूसरी तरफ गोलियों की बौछार और इन सबके बीच आपको सारी खबरें अपने लोगों तक पहुंचानी है। इसके अलावा आप इस बात से अंजान हैं कि अगले पल आपके साथ क्या होगा लेकिन मुझे लगता है रिस्क लेकर ही आप आगे बढ सकते हैं।

क्या इसके लिए किसी खास वार जर्नलिस्ट से आपने रेफ्रेंस लिये हैं?

जी नहीं बल्कि मैंनें कई वार जर्नलिस्ट की लाइव फुटेज देखी। मैं उनका नाम नहीं बताना चाहूंगी लेकिन उन महिला जर्नलिस्ट को देखकर मैं इस नतीजे पर पहुंची कि ऐसे माहौल में भी अपनी सहनशक्ति और शांति बनाए रखते हुए कोई कैसे रिपोîटग कर सकता है। इन फुटेज के अलावा मैंने कुछ डाक्युमेंट्री देखी और सुजित सर से भी बात की। इसके लिए सबसे जरूरी चीज थी बाडी लैंग्वेज को दुरुस्त करना वर्ना मेरे जैसी लड़की ऐसे माहौल में सिर्फ डर के मारे चिल्ला सकती है।

निर्देशक सुजित सरकार का कहना है कि इस फिल्म को देखने के बाद लोग नरगिस की 'रॉकस्टार’ को भूल जाएंगे आप क्या कहेंगी ?

मैं क्या कहूंगी उन्होंने कहा है सो वह इस बात का जवाब मुझसे बेहतर देंगे। मैं सिर्फ यह कहना चाहूंगी कि मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे अपने करिअर की शुरुआत में ही अच्छे लोगों के साथ काम करने का मौका मिल गया। जहां तक 'रॉकस्टार’ और 'मद्रास कैफे’ की बात है तो दोनों फिल्में स्टायल, जानर और किरदार के मद्देनजर काफी अलग हैं। मैं समझती हूं सुजित सर के साथ काफी वक्त बिताया है सो वह रियल नरगिस को जान गए होंगे। मुझे खुशी है कि वह मेरे काम को सराह रहे हैं।

'रॉकस्टार’ के बाद क्रिटिक्स ने आपकी काफी कमियां गिनाईं थी वह लम्हा कैसा था ?

'रॉकस्टार’ के बाद क्रिटिक्स की कमियों ने काफी निराश किया था लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कोई नहीं जानता। हर इंसान यहां एक दूसरे को जज करने में लगे रहते है। मेरे लिए हिंदी फिल्मों में काम करना उतना ही मुश्किल था जितना यहां की एक्ट्रेस के लिए किसी चाइनीज फिल्म में काम करना। खासतौर से जब उसे कहा जाए कि चाइनीज सीखने के लिए उन्हें महज एक महीने का वक्त मिलेगा। मेरे लिए यह वाकई बहुत मुश्किल था फिर भी मैंने उसे एक चैलेंज की तरह लिया। मुझे काफी कुछ सुनने को मिला लेकिन ठीक है। जिन्दगी में सब कुछ अच्छा या सब कुछ बुरा नहीं होता। उतार चढ़ाव आते रहते हैं सो इट्स ओके।
हमनें सुना है इस फिल्म के लिए आपने कुछ एक्शन सिक्वेंस भी किया है उसके बारे में बताइए?
एक्शन सिक्वेंस से ज्यादा मुश्किल फिल्म के हेक्टिक शेड्यूल थे। फिर भी मेरे जिन एक्शन सिक्वेंस की चर्चा हो रही है उसका श्रेय सुजित सर को जाता है। उन्होंने सेट इतना खूबसूरत बनवाया था कि मैं भी ठगी सी रह गई। एक घटना का जिक्र करना चाहूंगी। दरअसल हुआ यूं कि मैं सेट में जब दाखिल हुई तो देखा कुछ गरीब लोगों के साथ एक औरत बैठी हुई थी जिसके बाल यहां वहां उड़ रहे थे। मुझे लगा यह कुछ भिखारी लोग हैं जो शायद कुछ मांगने आए हैं। थोड़ा आगे गई तो देखा धुंआ उड़ रहा है और मैं डर गई लेकिन फिर पता चला कि यह सेट है। वह अनुभव इतना रियल था कि उसे देखकर मेरे होश उड़ गए थे।

जॉह्न के बारे में क्या कहेंगी ? इस फिल्म में जॉह्न माचो मैन की जगह सीध-साधे आदमी बनें हैं सो किसी तरह की निराशा है?

बिल्कुल नहीं बल्कि मैं बहुत खुश हूं कि वह एक रियलिस्टिक किरदार निभा रहे हैं। मैंने सुना है इसके लिए उन्होंने अपना कुछ वजन भी घटाया है। जैसा कि मैंने कहा मुझे रियलिस्टिक फिल्में ज्यादा अपील करती हैं क्योंकि तभी किसी किरदार में ढलने के लिए आप मानसिक रूप से खुद को तैयार कर पाते हैं।
बालीवुड में अकसर गासिप का बाजार गर्म रहता है। आपको इसमें कितनी दिलचस्पी है ?
बिल्कुल नहीं, ना मुझे गासिप करना पसंद है और ना सुनना लेकिन अफसोस मैंने जिस प्रोफेशन को चुना है वहां यह सब आम बातें हैं। जर्नलिस्ट अपनी कापी इंट्रस्टिंग बनाने के लिए कुछ भी लिखते हैं। मैं जानती हूं मुझे इन सबके बीच रहना है लेकिन सबसे ज्यादा दुख तब होता है जब मैंने आपको अपना विश्वासपात्र मानते हुए अपने दिल की बात बता दी और आपने उसे मिसकोट कर दिया। तब मुझे ऐसा लगता है कि क्या यही मेरी अच्छाई का सिला है। मैं समझती हूं आपको मसाला चाहिए लेकिन इस तरह का मसाला क्यों जिससे दूसरे दुखी हो जाएं।

हाल ही में आपने 'फटा पोस्टर निकला हीरो’ में एक आइटम नंबर किया है। आपको नहीं लगता करियर के शुरूआत में इस तरह का कदम खतरनाक साबित हो सकता है ?

मेरे लिए आइटम नंबर फन है। जिंदगी में गंभीरता जरूरी है लेकिन इतनी गंभीरता भी नहीं कि हम जीना छोड़ दें। मैं हर लम्हे को जीना चाहती हूं। यह बात तो आप भी जानती हैं कि किसी भी चीज से ज्यादा लगाव दुख देता है सो क्यों उसे इतना बांधकर रखा जाए। मुझे भगवान जो दे रहे हैं मैं उसका लुत्फ उठाना चाहती हूं। मैं किसी तरह के दबाव या प्रतियोगिता के तहत काम नहीं करना चाहती। अगर मैं ऐसा करती हूं तो यह मुझे दुख देगा। लोगों को यह अधिकार है कि वह मेरे फैसलों को जज करें या उन्हें चैलेंज करें लेकिन मैं नहीं करना चाहती। पता नहीं मैं इस बालीवुड में कब तक रहूंगी लेकिन जब तक रहूं खुशी से रहना चाहूंगी।

'मद्रास कैफे के अलावा कोई और फिल्म साइन की है ?

फिलहाल एक फिल्म साइन की है लेकिन उस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। फिलहाल सिर्फ और सिर्फ 'मद्रास कैफे’।
सुना है अगले साल रानी मुखर्जी और आदित्य चोपड़ा की शादी के बाद आपकी और उदय चोपड़ा की शादी होने वाली है?
यह सब झूठी अफवाहें हैं। मैं सच कहती हूं कि ऐसा कुछ भी नहीं है।
                                                                                                 साभार- नेशनल दुनिया





Friday 5 July 2013

कर लो दुनिया की सैर



पायलट : अब होंगी पक्षियों से बातें


क्या आपने कभी आसमान में उड़ने व पक्षियों से बातें करने का सपना देखा है, अगर नहीं तो अब देखना शुरू कर दीजिए क्योंकि अब ये सपना आप पायलट बनकर साकार कर सकते हैं।
पायलट की गिनती दुनिया के सबसे बेहतरीन जॉब में होती है। देखा जाए, तो आज भी इस क्षेत्र में नए अवसरों की कोई कमी नहीं है। आज तो भारत के आकाश में घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की भरमार होती जा रही है। डीजीसीए के अनुसार अगले पांच वर्षों के भीतर वाणिज्यिक पायलट की आवश्यकता दोगुनी हो जाएगी।
कार्यक्ष्ोत्र
पायलट का कार्य जिम्मेदारी तथा चुनौतियों से भरा हुआ होता है। एयरक्राफ्ट की उड़ान के साथ-साथ इनकी जिम्मेदारियां भी एयरक्राफ्ट की गति से बढ़ती जाती हैं। विमान उड़ाने के साथ-साथ इन्हें प्री-फ्लाइट प्लान्स पर भी गंभीरता से ध्यान देना होता है और सूचनाओं को जुटाना होता है साथ ही एयरक्रॉफ्ट में ईंधन की मात्रा की जानकारी रखना और ट्रैफिक कंट्रोल विभाग व कैबिन क्रू से बराबर संपर्क भी बनाए रहना होता है।
तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, घंटों तक कार्य करना, अपने काम को जिम्मेदारी के साथ पूरा करना जैसी चुनौतियां पायलट के सामने होती हैं और यदि आपमें यह क्षमता हैं तो आप भी एक कमर्शियल पालयट के रूप में एविएशन इंडस्ट्री में चमकीला करिअर बना सकते हैं।
प्रवेश योग्यता
कामर्शियल पायलट बनने के लिए कैंडीडेट को भौतिकी व गणित विषयों के साथ बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होना बेहद जरूरी होता है। इसके अलावा स्टूडेंट की उम्र 17 वर्ष होनी चाहिए। पायलट लाइसेंस प्राप्त करने के लिए उम्मीदवार को डीजीसीए द्बारा संचालित परीक्षा में शामिल होना पड़ता है। इस परीक्षा के तहत एयर नेवीगेशन, एविएशन एयर रेगुलेशन और तकनीकी विषयों से संबंधित थ्योरेटिकल क्वेश्चन पूछे जाते हैं। इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए कैंडीडेट को शारीरिक तौर से फिट होना भी बहुत जरूरी है।
लाइसेंस भी जरूरी
डीजीसीए की परीक्षा पास करने वाले कैंडीडेट्स को स्टूडेंट पायलट लाइसेंस (एसपीए) प्रदान किया जाता है। एयपीए में निपुण होने के बाद प्रायवेट पायलट लाइसेंस (पीपीए) प्रदान किया जाता है। अगर कैंडीडेट 5०० घंटे की ऑन द जॉब फ्लाइंग करने में सफल हो जाता है, तो वह सीनियर कॉमर्शियल पायलट लाइसेंस प्राप्त करने के योग्य हो जाता है और 15०० घंटे की उड़ान पूरी करने के बाद उम्मीदवार को एयरलाइंस ट्रांसपोर्ट पायलट लाइसेंस हासिल करने की योग्यता प्राप्त हो जाती है। यह सभी लाइसेंस डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) द्बारा प्रदान किए जाते हैं।
अतिरिक्त योग्यता
कामर्शियल पायट बनने के लिए कमिटमेंट की काफी जरूरत होती है। तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, घंटों तक कार्य करना, अपने काम को जिम्मेदारी के साथ पूरा करना जैसी चुनौतियां पायलट के सामने होती हैं और यदि आपमें यह क्षमता है, तो आप भी एक कामर्शियल पायलट के रूप बेहतर करिअर बना सकते हैं। पायलट को केवल उड़ान प्रक्रिया से ही भलीभांति परिचित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे मौसम-विज्ञान, वायु-दाव माडर्न मशीनों की समस्याओं का भी ज्ञान होना चाहिए। एक सफल पायलट बनने के लिए आपके पास मानसिक योग्यता एवं शीध्र निर्णय लेने की क्षमता भी होनी चाहिए।

संभावनाएं हैं अपार
एविएशन के इस क्षेत्र में जहां आप आसमान में उड़ सकते है, वहीं आप इस विकसित और विशाल क्षेत्र के दूसरे विभागों में भी अपने कैरियर की ऊंची उड़ान भर सकते हैं।
भारत में एयर इंडिया के आलावा कई प्राइवेट एयरलाइंस जैसे जेट एयरवेज, सहारा, एयर डेक्कन, स्पाइस जेट, इंडिगो आदि हैं, जिनमें इस क्ष्ोत्र से जुड़े युवा अच्छा रोजगार पा सकते हैं। इसके अतिरिक्त कई इंटरनेशनल एयरलाइंस जैसे यूनाइटेड एयरलाइंस, एयर कनाडा, वर्जिन अटलांटिक, एयर कनाडा, ब्रिटिश एयरवेज जैसे कई नाम हैं, जहां टैलेंटेड पायलट्स के लिए नौकरी की राहे खुली हुई हैं। कॉमर्शियल पायलट लाइसेंस प्राप्त करके सरकारी और गैर-सरकारी दोनों क्षेत्रों में नौकरी के अवसर हैं। वैसे, आज कल बड़े-बड़े बिजनेसमैन अपने निजी एयरक्राफ्ट के लिए पायलट की सर्विस लेते हैं। कॉमर्शियल पायलट ट्रेनिग पूरी करने के बाद वायु सेना में भी करिअर बनाया जा सकता है। एक ट्रेनी पायलट के रूप में करिअर शुरू करने के बाद सीनियरिटी के आधार पर पायलट बन सकते हैं।
सैलरी पैकेज
कॉमर्शियल पायलट की सैलरी काफी अच्छी होती है। इस प्रोफेशन से जुड़े युवाओं की स्ौलरी एयरलाइन और उड़ान के घंटों पर निर्भर करती है। अच्छी सैलरी के अलावा पायलट को ड्यूटी के समय नि:शुल्क आवास सुविधा, परिवार के लिए बिना टिकट विश्व में कहीं भी घूमने की सुविधा समेत कई अन्य सुुविधाएं भी मिलती हैं।

ट्रेनिंग संस्थान
 इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी, रायबरेली, उत्तरप्रदेश।
 राजपूताना एविएशन एकेडमी कोटा (राजस्थान)।
 अहमदाबाद, एविएशन एंड एरोनॉटिक्स, अहमदाबाद।
 






 

Sunday 30 June 2013

गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है



 
 

ऑटोमोबाइल : वाहनो में है सफल जिंदगी


रिजवान खान

माडर्न होते समाज में लोगों की जिंदगी भी माडर्न हो चुकी है, और भागमभाग भी बढ़ चुकी है, जिस कारण लोगों के पास समय की कमी हो रही है। इस भाग-दौड़ भरी जिदगी में मोटर वाहन लगभग हर व्यक्ति के लिए जरूरी हो चुका है। ऐसे में लोग माडर्न वाहनों का प्रयोग करना चाहते हैं। लोगों की वाहनों के प्रति बढ़ती दीवानगी ने ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के क्ष्ोत्र को काफी हद तक पहले से ज्यादा मजबूत और विस्तृत बना दिया है। वाहनो की बढ़ती डिमांड ने इनके मेंटीनेंस, साइज, रख-रखाव, कलर व डिजाइंस के प्रति लोगों को संजीदा कर दिया है। जिस कारण इस प्रोफेशन में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, और ऐसे प्रोफेशनल्स मांग भी, जो इससे जुड़े कार्यों को सही ढंग से पूरा कर सकें और जरूरी डायरेक्शन कार्य को संजीदगी से अंजाम दे सकें। इस काम को अंजाम देने वाले प्रोफेशनल्स ऑटोमोबाइल इंजीनियर कहलाते हंै।
अवसर हैं अपार
देश में बढ़ रहे वाहनों के कारण आज बाजार में ऑटोमोबाइल इंजीनियरों के लिए रोजगार के उजले अवसर उपलब्ध हैं। इस समय भारत दुनिया भर में अपने टू एवं थ्री व फोर व्हीलर्स समेत हैवी व्हीकल्स की उच्च गुणवत्ता की वजह से नं. वन की श्रेणी में आंका जाता है। भारतीय युवाओं में दोपहिया वाहनो का क्रेज हद से ज्यादा है इस कारण यहां बाइक्स के नये-नये माडल्स की डिमांड में तेजी आई है। पिछले एक दशक में भारत ने इस क्ष्ोत्र में रिकार्ड प्रगति की है। इस दौरान दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो को सफलता पूर्वक बनाने और उसकी रिकार्ड बिक्री से भारत ने इस क्ष्ोत्र में अपना परचम लहराया है। इस प्रोफेशन में लगातार हो रही बड़ोत्तरी ने इस क्ष्ोत्र में करिअर के नये अवसर युवाओं को उपल्ब्ध कराए हैं। देश में लगातार ग्रोथ कर रही इस इंडस्ट्री ने ऑटोमोबाइल की दुनिया को विस्तृत कर दिया है, आज युवा इस क्ष्ोत्र में सफलता की नई इबारत लिख रहे हैं।
फैला है दायरा
भारत स्पोर्ट यूटीलिटी व्हीकल्स के निर्यात के मामले में दुनिया का केंद्ग बिंदु बन रहा है, कम लागत के कारण सस्ते वाहनो को तैयार करने की वजह से यहां के वाहनो का निर्यात यूरोप, साउथ अफ्रीका, साउथईस्ट एशिया में करता है। भारत की छोटी कारें यूरोप में निर्यात की जाती हैं। आटोमोबाइल इंडस्ट्री की ग्रोथ के मामले में भारत आज अन्य देशों की तुलना में बड़ा निर्यातक बन चुका है। डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन के अनुसार भारतीय आटोमोबाइल इंडस्ट्री ने वर्ष 2००० से वर्ष 2०13 तक चार पर्सेंट की ग्रोथ कर ली है। और आने वाले पांच वर्षों में भारतीय छोटे व हल्के वाहनो के बाजार में लगभग 18 पर्सेंट की ग्रोथ हो सकती है।
इस समय विदेशी ऑटोमोबाइल कंपनियां भारत में अपने प्लांट लगा रही हैं, जो कि इस क्ष्ोत्र में युवाओं के लिए रोजगार के नये रास्ते खोल रही हैं, हालांकि इस क्ष्ोत्र में भारतीय कंपनियां टाटा मोटर्स, अशोक लीलैंड, मारूति, महिंद्रा एंड महिंद्रा भी नित नये प्रयोग कर ऑटोमोबाइल से जुड़े युवाओं को नये अवसर उपल्ब्ध करा रही हैं। इंडस्ट्री की ग्रोथ को देखकर साफतौर से कहा जा सकता है, कि इस प्राफेशन में करिअर की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
कार्यक्ष्ोत्र
ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में कंप्टीशन अब पहले से काफी बढ़ गया है। इसलिए यह क्ष्ोत्र बहुत ही चुनौतीपूर्ण बन चुका है। कार या फिर अन्य किसी वाहन को डिजाइन करना इंजीनियर्स के लिए एक सपने की उड़ान की तरह है। इनको डिजाइंस करते समय वाहनों के फीचर्स पर काफी ध्यान देना होता है, और कस्टमर्स की पसंद का ख्याल भी रखना पड़ता है। इनके कार्यक्ष्ोत्र में व्हीकल्स की स्पीड, स्टाइल, कलर, फ्यूल सिस्टम समेत अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को बेहतर करना होता है। आमतौर पर एक सफल ऑटोमोबाइल इंजीनियर ही कार या किसी अन्य वाहन के नए डिजाइन को डेवलप करने का कार्य करते हैं।
प्रवेश योग्यता व संस्थान
यदि आपकी इच्छा ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में करिअर सवांरने की है, तो आप निसंदेह ऑटोमोबाइल इंजीनियरिग के कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। ऑटोमोबाईल इंजीनियरिंग में डिग्री के साथ-साथ डिप्लोमा कोर्सेस भी संस्थानों द्बारा संचालित किए जा रहे हैं। जहां ऑटोमोबाइल इंजीनियरिग के डिग्री कोर्स में बारहवीं गणित विषयों से पास छात्र दाखिला ले सकते हैं। वहीं तीन वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम के लिए छात्रों को दसवीं पास होना जरूरी है। लगभग सभी संस्थानों में इन कोर्सों में एडमीशन के लिए प्रवेश परीक्षा भी आयोजित की जाती है।
बीटेक या बीई में बारहवीं (पीसीएम) के बाद आईआईटी-जेईई या एआईईईई क्वालिफाई करके एडमिशन लिया जा सकता है। आईआईटी, दिल्ली से इंडस्ट्रियल डिजाइनिग में मास्टर डिग्री (दो वर्षीय) हासिल कर सकते हैं। आईआईटी, कानपुर भी इंडस्ट्रियल डिजाइनिग में दो वर्षीय मास्टर डिग्री कोर्स करवाती है। इसके अलावा, इंडस्ट्रियल डिजाइन सेंटर, आईआईटी-मुंबई से इंडस्ट्रियल डिजाइनिग में मास्टर डिग्री (दो वर्षीय) प्राप्त कर सकते हैं। आईआईटी गुवाहाटी से बीटेक इन ऑटोमोबाइल डिजाइनिग के चार वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं। आप चाहें, तो प्राइवेट इंजीनियरिग इंस्टीट्यूट से भी ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। जबकि महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ऑटोमोटिव डिजाइन (पीजीडीएडी) कोर्स में एडमिशन लिया जा सकता है।

Saturday 29 June 2013

मुसीबत में साथी




 आपदा प्रबंधन में करिअर



पूरे संसार में छोटी-बड़ी आपदाएं आती रहती हैं, और इनमें जान-माल की बड़े पैमाने पर नुकसान भी होता है। उत्तराखंड की स्थित खुद इस बात को बयां कर रही है। इनमें प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा, भूस्खलन, समुद्री तूफान आदि शामिल हैं। जाहिर है, इस प्रकार की विपदाओं को कम से कम सामना करना पड़े और समस्या की स्थिति में नुकसान को कम करने एवं पीड़ित लोगों की मदद कैसे की जाए, इस बारे में समस्त देशों की सरकारें और स्वयं सेवी संगठन काफी गंभीरता से रणनीतियां तैयार करने में लगे हुए हैं।
कार्यक्ष्ोत्र
डिजास्टर मैनेजमेंट या आपदा प्रबंधन के कार्यक्षेत्र में सिर्फ आपदा के बाद के पुनर्निर्माण के कामकाज को संभालना या पीड़ित व्यक्तियों की मदद करना भर नहीं होता है बल्कि आपदा की पहले से ही सूचना देने की स्थिति का विकास और होने वाले नुकसान को कम करने व आपदा को टालने के विकास में योजना बनाने का कार्य भी शामिल होता है।
प्रवेश योग्यता
इस क्ष्ोत्र में करिअर बनाने के लिए प्रोफेशनल्स को कठिन परिस्थितियों में तैयार रहने के अलावा मुश्किल हालात में जुझारू प्रवत्ति का होना जरूरी है। इस क्ष्ोत्र में प्रवेश के लिए श्ौक्षिक योग्यता बारहवीं है लेकिन अगर आप ग्रेजुएट हैं तब भी आपके पास करिअर सवांरने अपार अवसर उपलब्ध हैं। इस प्रोफे शन के अलावा शायद ही समाज कल्याण के साथ आत्मसंतुष्टि और करियर ग्राफ को भी साथ-साथ आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचाने का मौका कोई और क्षेत्र दे पाए। देश में ही सरकारी एवं प्राइवेट सेक्टर के संस्थान अस्तित्व में आ गए हैं। इनमें सर्टिफिकेट से लेकर एमबीए स्तर तक के कोर्स उपलब्ध हैं।
जरूरी है पूरी जानकारी
अक्सर युवा इस प्रोफेशन को अपना तो लेते, लेकिन इसके चुनौतीपूर्ण व कठिन कार्यश्ौली में खुद को फिट नहीं कर पाते, और इस प्रोफेशन से पीछा छुड़ाने लगते हैं। इसलिए इस प्रोफेशन को अपनाने से पहले इस प्राफेशन से संपूर्ण जानकारी कर लेना बेहद महत्वपूर्ण है। इस क्ष्ोत्र के प्रोफेशनल्स लोगों की जिंदगी को बचाते हैं इसके लिए उन्हें खुद की जान जोखिम में डालनी पड़ती है। क्षतिग्रस्त या पीड़ित लोगों की पुर्नस्थापना तथा लोगों के जीवन को दुबारा सामान्य स्तर पर पहुंचाने के लिए प्रोफेशनल्स से अपेक्षाएं भी की जाती हैं। तो देखा जाए तो यह कार्यक्षेत्र चुनौतियों के साथ-साथ संवेदनात्मक पहलुओं को भी खुद में समेटे हुए है।
संभावनाओं का सागर
अगर आपकी रूचि लोगों को सहायता पहुंचाने में है, उनकी मदद करने में है, इसके लिए आप किसी भी हद तक जा सकते हैं। तो निश्चित ही यह प्रोफेशन आपके करिअर के लिए बेहतर साबित होगा। इस प्रोफेशन के तहत आपको प्रबंधन के सारे कार्यकलापों से अवगत कराया जाता है। इसके अलावा आपको समाज कल्याण के हित में संपूर्ण संवेदनाओं के साथ जानकारी मुहैया कराई जाती है। इसीलिए जरूरी है कि ऐसे ही युवा इस दिशा में करिअर निर्माण की पहल करने के बारे में सोचें जो मानवीय संवेदनाओं को समझते हों, और समाज हित में कार्य करने का जज्बा हो।
सरकार कर रही सहयोग
भारत जैसे विकासशील देशों में अक्सर ऐसे छोटे-बड़े हादसे तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को गुजरना पड़ता है। यही कारण है कि देश में आपदा प्रबंधन का एक अलग से प्राधिकरण केंद्र सरकार के स्तर पर विकसित किया गया है और इसी की शाखाएं तमाम राज्यों में बनाई जा रही हैं। इस कार्य के लिए सरकार की ओर से पर्याप्त धनराशि भी समय-समय पर मुहैया करा रही है और इस क्ष्ोत्र के प्रोफशनल्स को रोजगार के नये अवसर भी प्रदान कर रही है, इसके लिए बाकायदा नेशनल डिजास्टर रेस्क्यू फोर्स का गठन भी किया जा चुका है, युवाओं को इसमें भारी संख्या में शामिल कर रोजगार उपलब्ध कराया जाता है।
कठिन ट्रेनिंग
आपदा प्रबंधन में करिअर संवारने के लिए आपको कठिन ट्रेनिंग प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ट्रेनिग में प्रमुख तौर पर कुछ अहम पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है।
आपदा के कुप्रभाव को कम से कम करने पर ध्यान देना।
आपदाग्रस्त लोगों को तुरंत बचाव एवं राहत की व्यवस्था।
प्रभावित लोगों की पुर्नस्थापना और भविष्य में आने वाली आपदाओं से समय रहते कैसे निपटा जाए इसकी जानकारी मुहैया करना।
देखा जाए तो इस ट्रेनिग में कम समय में एक्शन लेने की कार्ययोजना और समस्त संसाधनों को एक प्रबंधक की तरह बहुत ही प्रभावी ढंग से संचालित करने पर ज्यादा जोर होता है।

शिक्षा संस्थान
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट, नई दिल्ली।
डिजास्टर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, भोपाल।
डिजास्टर मिटिगेशन इंस्टीट्यूट, अहमदाबाद।
सेंटर फार डिजास्टर मैनेजमेंट, पुणे।
इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट एंड फायर सर्विसेज, चंडीगढ़।





Thursday 27 June 2013

फिटनेस है तो रिलैक्स है


बनाइए दूसरों की सेहत और अपना करिअर



आज हर छोटे बड़े शहर में फिटनेस सेंटर खुल रहे हैं, इसका प्रमुख कारण लोगों का अपनी हेल्थ को लेकर अवेयर होना माना जा रहा है। इस कारण फिटनेस टेàनर के प्रोफेशन ने एक कमाउ प्रोफेशन के रूप में अपने पांव पसारे हैं। इस क्ष्ोत्र के बढ़ते दायरे का एक और अहम कारण बालीवुड को माना जा रहा है। जहां हीरो की सिक्स पैक एब्स बाडी देख युवा भी उस तरह की बाडी पाने के लिए फिटनेस सेंटरों व जिम हाउसों की ओर रूख कर रहे हैं, और भारी रकम चुका वैसी ही फिजिक स्टाइल पाना चाहते हैं। इस कारण यह प्रोफेशन काफी कमाई वाला साबित हो रहा है, अगर आप की भी रूचि इस क्ष्ोत्र में है तो निसंदेह यह क्ष्ोत्र आपको सैटिस्फैक्शन के साथ-साथ कमाई के मामले में भी बेहतर साबित होगा।

संभावनाएं है ज्यादा

बढ़ते पॉल्यूशन और कॉर्पोरेट कल्चर से तेज रफ्तार होती जिदगी में लोग अपनी सेहत के प्रति अब पहले से बहुत ही ज्यादा सजग हो गए हैं। रोज पैदा हो रही नई बीमारियों के बढ़ रहे खतरे से लोग अपनी सेहत की चिता पहले से ज्यादा करने लगे हैं। इसके लिए वे फिटनेस सेटरों का सहारा लेते हैं। आमतौर पर अब खुद को फिट रखना एक जरूरत बन चुकी है, कई तो सिर्फ दिखावे के लिए ही फिटनेस सेंटरों का रूख कर लेते हैं। इस क्षेत्र में भी युवाओं के लिए करिअर के कई अवसर दरवाजा खोले खड़े हैं।

कार्यक्ष्ोत्र

एक फिटनेस ट्रेनर के तौर पर आपका मुख्य कार्य होता है लोगों के शरीर को उनकी चाह अनुसार बनाना और शरीर को तंदुरस्त बनाने के साथ-साथ उसे एक सही और आकर्षक श्ोप देना होता है। फिटनेस ट्रेनर के तौर पर आप ग्रुप या इंडिविजुअल को शारीरिक तौर से ट्रेंड करना होता है, इस ट्रेनिंग में ऐरोबिक्स, वेट गेन/वेट लूज,के साथ ही बाडी की मशल्स को लचीला बनाना होता है।

रोजगार की कोई कमी नहीं

टैलेंटेड टàेनर्स के लिए इस क्ष्ोत्र में रोजगार की कोई कमी नहीं है। आमतौर पर एक फिटनेस ट्रेनर को जिम सेंटर्स, बड़े-बड़े होटल्स, हेल्थ क्लब, स्पा सेंटर्स व रिजार्ट्स में आसानी से काम मिल जाता है। बाडी फिटनेस में रुचि रखने वाले युवा इसके साथ कंप्यूटर, और तकनीकी ज्ञान हासिल कर बेहतर करिअर बना सकते हैं। फिटनेस के क्षेत्र में अब पहले से ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं। कई सारे बाडी बिल्डिंग चैंपियनशिप और कंप्टीशन भी आयोजित किए जाने लगे है। देश के सभी शहरों में जिमों की संख्या बढ़ रही है। इसलिए यह प्रोफेशन रोजगार के मायने में युवाओं के लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकता है। इस क्ष्ोत्र में आए परिवर्तन ने इस प्रोफेशन में करिअर की राह को काफी बेहतर कर दिया है। फिटनेस सेंटरों के बढ़ने से फिटनेस ट्रेनरों, फिटनेस इंस्ट्रक्टर्स की मांग भी दिनोदिन बढ़ती जा रही है।

कं पनियां भी रख रहीं टेàनर

कार्पोरेट कंपनियां भी मान चुकी हैं कि कर्मचारियों की सेहत का ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है, इसलिए कई बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए नियमित चेकअप कैंप लगवाती हैं। कई कंपनियों में फिजिकल ट्रेनर भी रखे जाते हैं।

खुद का सेंटर

स्वास्थ्य के प्रति बढ़ रही जागरूकता ने लोगों के रुझान को फिटनेस सेटरों की ओर कर दिया है, जिस कारण दिन पर दिन इन सेंटरों की संख्या और ट्रेनरों की मांग भी बढ़ती जा रही है। इस प्रोफेशन को अपनाने के साथ ही आप अपना खुद का फिटनेस सेंटर भी खोल सकते हैं, और अपनी कमाई को अपनी मेहनत और चाह के बल पर कई गुना बढ़ा सकते हैं।

प्रवेश योग्यता और कमाई

वैसे तो इस क्ष्ोत्र में इंट्री करने के लिए कोई विश्ोष योग्यता की जरूरत नहीं होती है। इस प्रोफेशन को अपनाने के लिए सबसे पहले आपको शारीरिक तौर से फिट होना जरूरी है, साथ ही बेहतरीन कम्युनिकेशन स्किल भी इस क्ष्ोत्र में सफल मुकाम बनाने के लिए बेहद जरूरी है। इसके अलावा अगर आप शारीरिक शिक्षा विषय से ग्रेजुएट हैं तो यह आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। आज देश में कई शिक्षा संस्थान फिटनेस से जुड़े सर्टीफिकेट, डिप्लोमा व डिग्री कोर्स भी संचालित कर रहे हैं। इस प्रोफशन से जुड़े युवाओं को आकर्षक वेतन मिलता है। इनका वेतन इनकी जॉब लोकेशन व कंडीशन पर भी डिपेंड करता है।

फिटनेस संबंधी कोर्स संचालित करने वाले संस्थान

इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोटर्स साइंस, दिल्ली।
लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन, त्रिवेंद्रम, ग्वालियर।
साई,नेताजी सुभाष चंद्र नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट, पटियाला, कोलकाता, बंगलौर।
गोल्ड जिम इंस्टीट्यूट, मुंबई।
इंडियन एकेडमी आफ फिटनेस ट्रेनिंग सेंटर, कर्नाटक।




Tuesday 25 June 2013

दस बहाने करके ले जाओ जॉब


जॉब पाने के टेन टिप्स


अगर आपके पास सभी जरूरी योग्यताएें और डिग्री के होने के बावजूद भी नौकरी नहीं मिल रही है, पूरे प्रयास करने के बाद भी आप जॉब मार्केट में कंपनियों का ध्यान आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं, और साथ ही आप इंटरव्यू में सफल भी नहीं हो पा रहे हैं तो आपको सेल्फ एनालिसिस करने की जरूरत है।
इससे आप अपनी खूबियों को पहचान सकेंगे और उन्हें जॉब्स ढूंढने में उपयोग कर पाएेंगे। कुछ खास बातें जो आपको नौकरी दिलाने में हेल्पफुल साबित हो सकती हैं।

आकर्षक हो रिज्यूमे व कवरिंग लेटर-

सेलेक्शन पान्ो के लिए आपके रिज्यूमे का आकर्षक होना बेहद जरूरी है। अपनी खूबियां संक्षेप में ही रख्ों, जो सच हो वही एड करें, बढ़बोलापन आपके लिए घातक साबित हो सकता है। आपने प्रोफाइल को थोड़ा आकर्षक बनाएं, रिज्यूमे के करेंट लेआउट का प्रयोग करें। कवरिंग लेटर में ग्रामेटिकल मिस्टेक न करें, इससे बैड इफेक्ट पड़ता है, साथ ही दर्शाएं की यह जॉब आपके लिए जरूरी है और आप कंपनी के लिए के कितने फायदेमंद हो सकते हैं।

कम्युनिकेशन बढ़ाएं- 

सोशल नेटवîकग वेबसाइट्स पर सक्रिय रहें। लोगों से मिलें। हर जॉब पोर्टल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएं। नौकरी की अपनी जरूरतों को स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए। ई-मेल या फोन करने की बजाय लोगों से सीधे मिलें। इससे आपका प्रभाव लोगो पर अच्छा पड़ेगा।

जान लें कंपनी के बारे में- 

आप जिस कंपनी में नौकरी करना चाहते हैं और इंटरव्यू देने जा रहे है, तो उसके वर्क कल्चर, टर्नओवर और हायरिग प्रोसेस के बारे में जानकारी जुटा लें। ताकि इंटरव्यू के दौरान आपको सहझता हो।

खुद का ब्रांड बनाएं

खुद की प्रोफाइल इंटरनेट साइट्स पर बनाएं। लिंक्डइन, फेसबुक, गूगल प्लस आदि पर अपनी आमद दर्ज कराएं। विजुअल सीवी का प्रयोग करें और सामने वाले से पॉजिटिव तरीके से कम्यूनिकेट करें, साथ ही अपना कांफीडेंस हाई रख्ों। इससे सामने वाले पर आपकी पाजिटिव इमेज बनेगी, जो आपके लिए फायदेमंद ही साबित होगा।

जॉब ओरिएंटड साइट्स

इंटरनेट पर मौजूद जॉब साइट्स पर रेगुलर विजिट करें, साथ ही कंपनियों की जॉब साइट्स पर भी अपनी आमद दर्ज कराते रहें। जॉब सर्च इंजिंस का इस्तेमाल करें, जॉब बैंक्स पर भी रेगुलर विजिट करना आपके लिए श्रेयस्कर रहेगा।

जोश के साथ नौकरी खोजें

नौकरी के प्रति आपका ढीला रवैया आपको नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए जॉब सर्च इंजिन्स का इस्तेमाल करें। और उन पर प्रोफाइल अपने इंट्रेस्ट व लोकेशन के अनुसार ही हमेशा अपडेट करते रहें।

जॉब सर्च टूल्स का करें प्रयोग

आज कल हर किसी के पास हाई-फाई एप्लीकेशंस से युक्त व टेक्नोलॉजी से लबरेज गैजेट्स हैं तो लेकिन वह इसका खुद के हित में प्रयोग नहीं कर पा रहा है। आज तमाम तरह की एप्लीकेशंस मोबाइल्स व लैपटॉप में मौजूद हैं जो जॉब ढूंढने में अहम रोल अदा करती हैं लेकिन इसके लिए हमारा जानकार होना बेहद जरूरी है।

लिस्ट बनाएं

जिस तरह की कंपनी में आप काम करना चाहते हैं, उन कंपनियों की एक सूची बनाएं, और बारी-बारी उनसे कांटेक्ट करते रहें व समय पड़ने पर विजिट भी कर लें। कंपनीयों की प्रॉपर लिस्टिंग आपको काफी हद तक फायदा पहुंचा सकती है।

अपनी खूबियों को पहचानें-  

नौकरी ढूंढने से पहले आपको अपनी खूबियों की बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। इस बात की भी जानकारी रखें कि आज जॉब्स देने वाली कंपनियों की जरूरतें क्या हैं। आजकल एक नौकरी के लिए हजारों आवेदन आते हैं, ऐसे में आपमें कुछ खास योग्यताएं होनी चाहिए , ताकि आप वह जॉब हासिल कर सकें।

ऑफर लेटर को ध्यान से जांचे

और आखिर में इस बिंदु पर खास तौर से ध्यान दें, नौकरी पक्की होने की खुशी हर व्यक्ति को होती है, लेकिन ऑफर लेटर को साइन करते समय उसमें मौजूद तथ्यों को जांचना बेहद जरूरी होता है। ऑफर लेटर साइन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रख्ों, सैलरी, वर्किंग सेड्यूल, कंपनी की लोकेशन के साथ ही वहां का वातावारण भी जानना बहुत जरूरी होता है। कई बार कंपनी का में चल रही राजनीति आपके काम और प्रगति में बाधक बन जाती है।
इस लिए ऊपर सुझाए गए बिंदुओं पर गौर करें और उन्हें अमल में लाकर नई नौकरी को इंज्वाय करें।



 

Friday 21 June 2013

विदेश शिक्षा की पहली सीढ़ी



विदेश शिक्षा की है आस तो टफेल करो पास


अगर आपका सपना है, विदेश में पढ़ने का तो आपको गुजरना होगा टफे ल की कठिन प्रवेश प्रकिृया से। टफेल, टेस्ट ऑफ इंग्लिश एज एन फॉरेन लैंग्वेज अब सिर्फ अमेरिकन यूनीवर्सिटीज में अध्ययन के लिए ही नहीं बल्कि अन्य कई विदेशी यूनिवर्सिटियों में प्रवेश के लिए भी वैलिड हो चुका है। हावर्ड, ऑक्सफोर्ड, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिगापुर सहित लगभग छह हजार यूनिवर्सिटी में टफेल को मान्यता मिली हुई है।
एजूकेशन टेस्टिंग सर्विस द्बारा दुनिया भर के प्रमुख देशों में टफेल टेस्ट को आयोजित किया जाता है। एजूकेशन टेस्टिंग सर्विस एक नानप्राफिट यूएस बेस्ड आर्गनाइजेशन है। जो एजूकेशन के क्ष्ोत्र में विदेश शिक्षा के लिए वर्ल्डवाइड लेवल के कई तरह के एग्जाम कंडक्ट कराती है, जिनमें से एक टफेल भी है।

एप्लाई कैसे करें

टफेल टेस्ट में एपियर होने के लिए आपको अपने लोकल सेंटर पर जाकर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। रजिस्ट्रेशन के लिए आप एजूकेशन टेस्टिंग सर्विस की वेबसाइट ६६६.ी३२.१ॅ/३ीा’ॅ४्रीि.ँ३Þ <ँ३३स्र://६६६.ी३२.१ॅ/३ीा’ॅ४्रीि.ँ३Þ> पर आनलाइन कर सकते हैं। इसकी एग्जाम रजिस्ट्रेशन फीस हर कंट्री के लिए अलग-अलग निर्धारित है। भारतीय कैंडीडेट के लिए यह फीस 35 यूएस डालर तय की गई है।

टेस्ट फार्मेट

टफेल टेस्ट मुख्यत: दो तरह के फार्मेट में आयोजित कराया जाता है, पहला इंटरनेट बेस्ड टेस्ट [आईबीटी] और दूसरा पेपर बेस्ड टेस्ट [पीबीटी]। यह टेस्ट भारत के विभिन्न शहरों में अलग-अलग समय पर स’ाह के आखिरी दिनों शनिवार व रविवार को आयोजित कराया जाता है।

टफेल टेस्ट को चार सेक्शंस में डिवाइड किया गया है।

रीडिग- रीडिग सेक्शन में 3 से 5 लंबे पैसेज शामिल किए जाते हैं और इन पर आधारित प्रश्न दिए जाते हैं। ये पैसेज अंडरग्रेजुएट सिलेबस से लिए जाते हैं और इसमें कैं डीडेट के नॉलेज को चेक किया जाता है। इसके जरिए कैंडीडेट की अलग-अलग लेवल से चेकआउट किया जाता है, जैसे टॉपिक क्लैरिटी, पैसेज आइडिया, वोकेबलरी आदि।

लिस्निंग- इस सेक्शन के अंतर्गत स्टूडेंट्स को छह पैसेज को सुनाया जाता है। इस सेक्शन में चार एकेडमिक पैसेज के साथ दो स्टूडेंट्स के बीच बातचीत होती है। लिस्निंग सेक्शन में स्टूडेंट को पैसेज के आइडिया, डिटेल, पर ध्यान देना जरूरी होता है।

स्पीकिग- इस सेक्शन के अंतर्गत टोटल छह टास्क दिए जाते हैं, जिसमें दो टास्क स्वतंत्र रूप से करने होते हैं, जबकि अन्य टास्क ग्रुप में होते हैं। इसमें स्टूडेंट एक पैसेज पढ़ता है और दूसरा पैसेज सुनता है और फिर दोनों में संबंध बताते हुए उसको डिफाइन करता है।

राइटिग- राइटिग सेक्शन में दो टास्क दिए जाते हैं। इसमें पहला टास्क इंडीविजुअली जबकि दूसरा ग्रुप में करना होता है। इसमें स्टूडेंट्स एक पैसेज पढ़ता है और दूसरा पैसेज सुनता है। फिर दोनों पैसेज में रिलेशन को डिफाईन करते हुए अपनी ओपीनियन को लिखता है।


टेस्ट में समय सीमा व प्रश्नों की संख्या
रीडिग 3 पैसेज और 39 प्रश्न 6० मिनट
लिस्निंग 6 पैसेज और 34 प्रश्न 5० मिनट
स्पीकिग 6 टास्क और 6 प्रश्न 2० मिनट
राईटिंग 2 टास्क और 2 प्रश्न 55 मिनट

विस्त्त जानकारी के लिए वेबसाइट [६६६.ी३२.१ॅ] को देखें ।

Thursday 20 June 2013

पास करो नेट लाइफ करो सेट





वक्त कागज और कलम की गुफ्तगू का




यूजीसी नेट, जेआरएफ एंट्रेंस एग्जाम
एग्जाम डेट : 3० जून

बस अब वक्त है आपकी मेहनत को रंग चढ़ाने का। अगर आप यूजीसी द्बारा आयोजित की जाने वाली नेशनल इलेजिबिलिटी टेस्ट [नेट] ओर जूनियर रिसर्च फेलोशिप [जेआरएफ] की परीक्षा में शामिल हो रहे हैं और बेहतर अंकों के साथ सफल होना चाहते हैं, तो आपके लिए बेहतर यही है कि इस वक्त आप सिर्फ रिवीजन करें। अगर आप रिवीजन इस कम वक्त को मैनेज करके बेहतरी से करते हैं, तो निश्चित ही आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन सफलता पाने के लिए प्रॉपर प्लानिंग करनी होगी, और उसी के अनसार परीक्षा की तैयारी को यूटीलाइज करना होगा।
नेट एग्जाम में आप बेहतर परफार्म तभी कर पाएंगे, जब आप एग्जाम की तैयारी सिलेबस के अकार्डिंग करेंगे। आम तौर पर आप ने अब तक इस एग्जाम की प्रिपरेशन भी शुरू कर चुके होंगे। लेकिन अब समय है इसे फाइनल टच देने का। कई स्टूडेंट्स बेहतर पढ़ाई करने के बावजूद रिविजन के अभाव में परीक्षा में सफल नहीं हो पाते हैं। इसका मेन रीजन यह है कि वे एग्जाम प्रिपरेशन को फाइनल टच नहीं दे पाते हैं।
 

एग्जाम पैटर्न

इस एग्जाम को प्रमुख रूप से तीन पेपरों में बांटा गया है। इस परीक्षा में ऑब्जेक्टिव टाइप ही सवाल पूछे जाते हैं।

पहला पेपर

पहला पेपर जनरल एप्टीट्यूड का होता है। यह पेपर सभी कैंडीडेट्स के लिए कॉमन होता है, इसके तहत रीजनिंग, कांप्रीहेंशन, डायवर्जेंट थिंकिंग से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। इन सवालों के जरिए कैंडीडेट्स की नॉलेज चेक किया जाता है। यह पेपर 1०० मार्क्स व सवा घंटे की समयसीमा का होता है। इस पेपर में 6० सवाल होते हैं जिसमें से अभ्यर्थी को 5० हल करने होते हैं।

दूसरा पेपर

यह पेपर सब्जेक्ट बेस्ड होता है, इसमें कैंडीडेट द्बारा सेलेक्ट किए गए सब्जेक्ट से ही सवाल पूछे जाते हैं। इस पेपर में पचास सवाल होते हैं जोकि साल्व करना कंपल्सरी होता है। इस पेपर की समयसीमा पहले पेपर की तरह ही सवा घंटे होती है, यह पेपर टोटल 1०० मार्क्स का होता है।

तीसरा पेपर

यह पेपर भी सब्जेक्ट बेस्ड होता है। इस पेपर में कुल 75 प्रश्न होते हैं, जिनमें सभी को हल करना होता है, हालांकि यह पेपर अन्य पेपर्स की तुलना में सवा दो घंटे की समयसीमा का होता है। इस पेपर में सब्जेक्ट से जुड़ी गहन नॉलेज सवालों के जरिए चेक की जाती है। इस पेपर में 15० मार्क्स का होता है।

क्वालीफाइंग पर्सेंटेज

इस एग्जाम में जहां जनरल कैंडीडेट्स को पहले और दूसरे पेपर में 4०-4० पर्सेंट लाने होते हैं जबकि तीसरे पेपर में 5० पर्सेंट, और टोटल क्वालीफाइंग 65 लाना होता है। वहीं ओबीसी को पहले-दूसरे पेपर में 35-35 पर्सेंट व तीसरे पेपर में 45 पर्सेंट जबकि टोटल क्वालीफाइंग पर्सेंट 6० होता है। एससी व एसटी कैंडीडेट के लिए पहले-दूसरे पेपर में 35-35 पर्सेंट जबकि टोटल क्वालीफाइंग पर्सेंट 55 होता है। इसलिए कैंडीडेट्स को क्वालीफाइंग पर्सेंट को ध्यान में रखकर तैयारी करनी होती है।
 

स्पीड,एक्यूरेसी और टाइमिंग

इस परीक्षा में आप तभी सफल हो सकते हैं, जब आप स्पीड,एक्यूरेसी और टाइमिंग का ध्यान रखेंगे। ऑब्जेक्टिव टाइप के एग्जाम्स में इसकी बहुत इंपार्टेंस होती है। आपके लिए बेहतर होगा कि निर्धारित समय सीमा के अंदर प्रश्नों को एक्यूरेसी के साथ साल्व करने की प्रैक्टिस आपके लिए हमेशा फायदेमंद रहेगी।
इस परीक्षा में बेहतर मार्क्स तभी ला सकते हैं, जब आपकी अपने विषय पर पकड़ होगी। इस कारण सबसे पहले आप अपनी विषय से रिलेटेड प्रश्नों का हल करें। बाजार मे इससे संबंधित काफी पुस्तक उपलब्ध होते हैं। करेंट रिसर्च पर गहरी निगाह रखें। इस परीक्षा की तैयारी कुछ दिनों में संभव नहीं है। इसकी पूरी तैयारी आप तभी कर पाएंगे, जब आप प्लानिग से तैयारी करेंगे।
 

सब्जेक्ट पर कमांड

क्वेश्ंचस का लेवल पोस्टग्रेजुएट के सिलेबस के अनुसार ही होता है। इस लिए यह जरूरी हो जाता है कि आपको अपने विषय पर कमांड हो। बेहतर स्ट्रेटेजी मेंटेन करके आप अपनी बुक्स को रिवाइज करें। अब समय कम है बनाए गए नोट्स को दोहराएं। इस तरह की प्लनिंग से फायदा यह होगा कि आप कम समय में बेहतर तैयारी कर पाएंगे और परीक्षा के समय बेहतर प्रदर्शन करेंगे।

नोट्स प्रिपेयर करें

बाजार में इसके लिए नोट्स भी मिलते हैं। यदि आप चाहें, तो इसकी हेल्प ले सकते हैं। तैयारी के लिए इंपार्टेंट टॉपिक्स को एक जगह नोट भी कर सकते हैं। इस लिस्ट में उन्हीं को शामिल करें, जिससे हर वर्ष या सर्वाधिक प्रश्न पूछे जा रहे हैं। ऑब्जेक्टिव टाइप के प्रश्नों में कैंडीडेट्स के लिए तीन टाइप के क्वेश्चंस पूछे जाते हैं। जिनमें पहला-आसान, दूसरा-5०-5० और तीसरा लकी होता है। इसलिए आंसर सोंच समझकर लिखें।

स्कॉलरशिप

परीक्षा में मेरिट के अनुसार सबसे अधिक मार्क्स लाने वाले स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप प्रदान की जाती है। जहां कुछ उम्मीदवारों को जूनियर रिसर्च फेलोशिप यानी जेआरएफ, वहीं बाकी को नेट यानी नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट के लिए चुना जाता है। जेआरएफ में चुने गए स्टूडेंट्स को रिसर्च के लिए स्कॉलरशिप दी जाती है, जबकि नेट क्वालीफाई को स्कॉलरशिप नहीं मिलती। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले स्टूडेंटस ही लेक्चरर या रीडर पद के एलिजिबल होते हैं।

आवश्यक योग्यता

अभ्यर्थियों के लिए संबंधित विषय में कम से कम 55 प्रतिशत अंकों के साथ किसी मान्यता प्राप्त यूनीवर्सिटी से पोस्टग्रेजुएट होना जरूरी होता है। एससी, एसटी तथा विकलांग व्यक्तियों के लिए 5० प्रतिशत अंकों से पोस्टग्रेजुएट होना जरूरी है। जेआरएफ के लिए उम्र सीमा 19 वर्ष से 28 वर्ष के मध्य होनी चाहिए।

[कैरियर इंडेवर एकेडमी के करिअर काउंसलर अमर यादव से बातचीत पर आधारित।]


Sunday 16 June 2013

ऑफिस-ऑफिस चला मुसद्दी


ऑफिस में बनाएं हैप्पी माहौल, पाएं सक्सेस


हमारा वर्कप्लेस हमारे लिए बहुत ही उपयोगी होता है इसलिए वहां के माहौल को खुशमिजाज बनाए रखना हमारे लिए बेहद जरूरी बन जाता है। ऑफिस में लोग लगभग अपना पूरा दिन बिताते हैं। कुछ सहकर्मी अच्छे फ्रेंड्स भी बन जाते हैं। अब पूरा दिन उनके साथ रहने पर बातें भी खूब होती हैं। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि ऑफिस में फ्रेंडली एंवॉयरमेंट काम के प्रोडक्शन को इंप्रूव करता है।
आज के वर्क-कल्चर में आप चाहे किसी भी फील्ड या पोस्ट पर क्यों न हो, कंपनी आपसे हमेशा कुछ अलग और नया चाहती है। कहने का मतलब यह है कि कई कंपनियां आज ऐसे कर्मचारियों को अधिक प्राथमिकता देती हैं, जो अपने कार्य से कंपनी की ग्रोथ को इंप्रूव कर सकें। और ऐसा, आपकी कंपनी और आपके काम करने की डेस्क के माहौल पर सबसे ज्यादा निर्भर करता है।

पोस्ट योर गोल्स

इस प्रतियोगी दौर में सक्सेस तक पहुंचना बहुत ही टेड़ी खीर बनता जा रहा है। सफलता को पाने के लिए हमें कंसंटेàशन के साथ अपने काम को अंजाम देना होता है, और कंसंटेàट होने के लिए आपक ा कूल माइंड होना व आपके गोल्स का क्लियर होना बेहद जरूरी है। कहते हैं जब हमारा सपना बार-बार हमारी आंखांे में तैरता है, तभी हम उसे पूरा करने की कोशिश करते हैं। इस लिए हमारे ऊपर भी यह बात लागू हो जाती है कि हम अपने गोल्स को अपने सामने रखें ताकि हम उसे पाने की कोशिश लगातार करते रहें।

जरूरी दस्तावेज आंखों के सामने

आफिस में अक्सर काम करते हुए हम अपने बेहद जरूरी अप्वाइंटमेंट और असाइनमेंट्स को भूल जाते हैं। जिस कारण हमारा काम पीछे छूट जाता है या फिर कभी-कभी बिगड़ भी जाता है। इस तरह की समस्या से बचने के लिए हमें चाहिए की अपने जरूरी दस्तावेज हम अपनी आंखों के सामने रखें जिससे वो हमें बार-बार रिमाइंड करते रहें।

पसंदीदा फोटो रखें सामने

आमतौर पर माना जाता है कि अगर जिसे हम पसंद करते हैं या फि र हम जिसे आदर्श मानते हैं, वो अगर हमारे साथ रहते हैं तब हमारी परफामेर्ंस कई गुना बढ़ जाती है। क्योंकि हम उनसे मोटीवेट होते हैं और काम के प्रमि सकारात्मकता का दायरा बढ़ता है। इसलिए हम अपने आफिस में भी उनकी फोटो लगाते हैं जो हमारे सामने रहती है तो निश्चित तौर पर काम पर सकारात्मक असर पड़ता है और हम अपना बेहतर दे पाते हैं।

पौधों से दोस्ती

आफिस में अगर आपके आसपास कोई पौधा लगा है तो आपक े काम और आपके स्वास्थ्य में कोई गिरावट नहीं आती। क्योंकि पौध्ो ऑक्सीजन और पाजिटिव इंवायरमेंट क्रिएट करते हैं, जो हमारी तंदुरस्ती और काम के तरीके एनर्जेटिक बनाता है।

साफ-सफाई

आफिस को हमेशा पूरी तरह से क्लीन रखना चाहिए। साफ-सफाई और सुंदरता हर किसी का मन मोह लेती है। इसलिए जरूरी जाता है कि आपकी डेस्क साफ-सुथरी और चकाचक हो, जिससे आपके माइंड में सकारात्मकता का संचार होता है, और अपना सौ प्रतिशत दे पाते हैं।

पौष्टिक आहार

अगर आपको सफल इंप्लाई बनना है तो सबसे पहले जरूरत होती है, हेल्दी और पौष्टिक आहार लेने की। संतुलित डाइट आपके एनर्जी लेवल को बूस्ट करती है जिससे आप बिना थके हुए अपना कार्य पूरा कर पाते हैं। सही और पौष्टिक आहार लेने से आप हमेशा जोश से लबरेज रहते हैं और नकारात्मकता आपके आसपास फटक भी नहीं पाती। और आप अपने काम को पूरे जोश के साथ समय से पूरी कर लेते हैं। इससे आफिस में सहकर्मियों और बॉस के मन में आपके प्रति पॉजिटिव इमेज क्रिएट होती है जो आपकी प्रोगेस में चार चांद लगाती है।


Friday 14 June 2013

खाओ खिलाओ करिअर बनाओ




http://www.nationalduniya.com/Admin/data/2013/06/14/Delhi/Delhi/2013_06_14_page15.html#


होटल मैनेजमेंट में उज्जवल है भविष्य


देश में होटल इंडस्ट्री के कारोबार में लगातार इजाफा हो रहा है। भारत में होटल इंडस्ट्री के विकास का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एशिया में होटल इंडस्ट्री के विकास के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। विश्ोषज्ञों के अनुसार माना जा रहा है कि इस क्ष्ोत्र में भारत सबसे तेजी से विकसित होने वाला पांचवा बडाè देश होगा। होटल इंडस्ट्री में बढ़ते स्कोप को देखते हुए यदि आप होटल मैनेजमेंट से जुड़े कोर्स कर लेते हैं, तो भविष्य में आपके लिए नौकरियों की कमी नहीं रहेगी।

अवसर हैं अपार

होटल मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद आप होटल एवं हॉस्पिटैलिटी उद्योग में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर कार्य की शुरुआत कर सकते हैं। इसके अलावा, होटलों में किचन मैनेजमेंट, हाउसकीपिग मैनेजमेंट, एयरलाइन केटरिग, केबिन सर्विसेज, सर्विस सेक्टर में गेस्ट या कस्टमर रिलेशन एक्जिक्यूटिव, फास्ट फूड चेन, रिसोर्ट मैनेजमेंट, क्रूज शिप होटल मैनेजमेंट, गेस्ट हाउसेज, केटरिग, रेलवे या बैंक या बड़े संस्थानों में केटरिग या कैंटीन आदि में नौकरियां मिल सकती हैं। इसके साथ साथ आप स्वरोजगार की राह भी अपना सकते हैं।

कौन-कौन से कोर्स

देश में होटल मैनेजमेंट की एजूकेशन नेशनल काउंसिल फॉर होटल मैनेजमेंट एंड कैटरिग टेक्नोलॉजी द्बारा कराई जाती है। काउंसिल से देश के 21 सेंट्रल इंस्टीट्यूट, 7 स्टेट इंस्टीट्यूट और करीब 7 प्राइवेट इंस्टीट्यूट जुड़े हुए हैं। होटल मैनेजमेंट में दो तरह के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। डिग्री एवं डिप्लोमा कोर्सेस। 12वीं के बाद इस क्ष्ोत्र में ग्रेजुएट डिग्री में सीध्ो व प्रवेश परीक्षा के तौर पर एडमीशन लिया जा सकता है। अगर आप ग्रेजुएट हैं तो आप इस कोर्स के डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, में प्रवेश ले सकते हैं। साइंस के छात्रों के लिए बीएससी इन होटल मैनेजमेंट एंड कैटरिग साइंस में डिग्री प्रदान की जाती है, वहीं आर्ट स्ट्रीम के छात्रों के लिए बीए होटल मैनेजमेंट एंड कैटरिग में डिग्री प्रोवाइड की जाती है। जहां डिप्लोमा कोर्सेस दो साल की अवधि के होते हैं तो डिग्री कोर्सेसे तीन साल के होते हैं।

कैसे मिलेगा प्रवेश

12वीं पास स्टूडेंट होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा या डिग्री हासिल कर सकते हैं, लेकिन आप अगर ग्रेजुएशन के बाद इस क्ष्ोत्र में करिअर तलाश रहे हैं तो उनके लिए भी अब रास्ते खुल गए हैं। एमएससी इन होटल मैनेजमेंट और पीजी डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट की डिग्री हासिल कर सकते हैं। अधिकतर संस्थान ऑल इंडिया एडमिशन टेस्ट एंव इंटरव्यू के आधार पर स्टूडेंट्स का चयन करते हैं।

कोर्स एक रास्ते अनेक

होटल इंडस्ट्री में आपके लिए कई ऑप्शन हैं। आप चाहें, तो मैनेजमेंट, मार्केटिग आदि में करियर बना सकते हैं। आइए जानते हैं कहां-कहां है आपके लिए हैं विकल्प।
मैनेजमेंट: किसी भी बड़े होटल को सही ढंग से चलाने की जिम्मेदारी मैनेजमेंट पर ही होती है। साथ ही वे इस बात पर भी ध्यान रखते हैं कि कैसे होटल का रेवेन्यू बढ़ाया जा सकता है। अलग-अलग विभागों के सहायक प्रबंधक अपने विभागों के कार्य पर निगरानी रखते हैं। बड़े होटलों में तो रेजिडेंट मैनेजर भी होते हैं।
फ्रंट ऑफिस: फ्रंट ऑफिस में बैठने वाले कर्मचारी होटल में आने वाले अतिथियों का स्वागत करते हैं। यहां रिसेप्शन होता है, विजिटर्स के लिए इंफार्मेशन प्रदान करते हैं। ये लोग अतिथियों का सामान उनके कमरे में पहुंचवाने से लेकर उनको सूचनाएं भिजवाने का कार्य करते हैं।
फूड एंड बेवरेज: इस विभाग को तीन भागों में बांटा गया है। किचन, और फूड सर्विस विभाग। इस विभाग के मैनेजर और कर्मचारी मिल कर इस विभाग की जिम्मेदारियों को निपटाते हैं। खाना बनाने से लेकर परोसने तक का काम यहां होता है।
हाउसकीपिग: किसी भी होटल को उम्दा किस्म की देखभाल की जरूरत होती है। हाउसकीपिग विभाग सभी कमरों, मीटिग हॉल, बैंक्वेट हॉल, लॉबी, रेस्तरां आदि की साफ-सफाई की जिम्मेदारी उठाता है। यह होटल का बेहद महत्त्वपूर्ण विभाग है और 24 घंटे काम करता है।
मार्केटिग विभाग: आज होटल में उपलब्ध सेवाओं व सुविधाओं की मार्केटिग होटल मैनेजमेंट का अहम हिस्सा है। इनकी काबिलियत का ही प्रत्यक्ष लाभ होटल को मिलता है।

ये चीजें भी हैं जरूरी

इस क्ष्ोत्र में रुचि रखने वालों के लिए सबसे जरूरी तो यह है कि उनका पर्सनैल्टी आकर्षक होने के साथ-साथ कम्युनिकेशन स्किल भी शानदार हो। किसी भी मसले पर तार्किक तरीके से सोचने की क्षमता के साथ-साथ मैनेजिंग स्किल्स का होना भी बेहद जरूरी होता है। इनके अलावा, आपका शारीरिक तौर से स्वस्थ होना भी काफी मायने रखता है। और किसी भी समय काई भी कार्य करने के लिए तैयार रहने वाला व्यक्तित्व होना इस प्रोफेशन में सफलता की बुलंदियों पर पहुचा सकता है।