Wednesday, 18 September 2019

पाकिस्‍तान से आए रामसे ब्रदर्स ने बॉलीवुड में चलाया भुतिहा सिनेमा, कोई नहीं दे सका टक्‍कर

बॉलीवुड में भुतिहा फिल्‍मों के जनक कहे जाने वाले रामसे ब्रदर्स को उनकी कम बजट की हॉरर फिल्‍मों के मामले में कोई भी निर्माता निर्देशक टक्‍कर नहीं दे पाया। विभाजन के बाद पाकिस्‍तान से सबकुछ छोड़कर आए रामसे ब्रदर्स ने अपनी मेहनत के बलबूते बॉलीवुड में सिक्‍का जमाया। सात भाइयों के ग्रुप रामसे बद्रर्स के श्‍याम रामसे का 18 सितंबर मंगलवार को बीमारी के बाद निधन हो गया। जबकि, एक एक भाई तुलसी कुमार की पिछले साल 2018 में मौत हो चुकी है। रामसे ब्रदर्स फिल्‍म वीराना, पुराना मंदिर, बंद दरवाजा जैसी सुपरहिट रहने वाली फिल्‍मों के लिए जाने जाते हैं।




तीन फिल्‍में फ्लॉप चौथी ने शोहरत दिलाई, सिनेमाघर हाउसफुल हो गए 
पाकिस्‍तान के कराची और लाहौर शहर में इलेक्‍ट्रॉनिक का बिजनेस करने वाले एफयू रामसे को विभाजन के दौरान पाकिस्‍तान छोड़ना पड़ा। पाकिस्‍तान में जमे जमाए काम के छूटने और भारत में आकर बस गए। मुंबई में रहते हुए उन्‍होंने लैमिंग्‍टन रोड पर इलेक्‍ट्रॉनिक का व्‍यापार शुरू किया। हिंदी सिनेमा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए एफयू रामसे फिल्‍ममेकिंग में उतर गए। इस काम को स्‍टैब्लिश करने में उनके सात बेटों ने बड़ा रोल निभाया। 1954 में उन्‍होंने शहीद ए आजम भगत सिंह, 1963 में रुस्‍तम शोहराब और 1970 में एक नन्‍हीं मुन्‍ही लड़की जैसी फिल्‍मों का निर्माण किया। इन फिल्‍मों को बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी। 1971 में हॉरर फिल्‍म दो गज जमीन के नीचे को बड़ी सफलता हासिल हुई। आलम ये हुआ कि फिल्‍म रिलीज होते ही हाउसफुल हो गई और सिनेमाघर मालिकों को हाउसफुल के बोर्ड टांगने पड़ गए।



बॉलीवुड में भुतिहा फिल्‍मों की नींव रखी
एफयू रामसे के फिल्‍मों में उतरने के साथ ही उनके सभी 7 बेटे भी इंडस्‍ट्री में कूद पड़े और एक साथ मिलकर काम करना शुरू किया। उनके बेटों को बॉलीवुड में रामसे ब्रदर्स के नाम से पहचान मिलने लगी। तीन अच्‍छी कहानियों पर बनाई फिल्‍मों को फ्लॉप और भुतिहा फिल्‍म दो गज जमीन के नीचे को अपार सफलता मिलने के बाद रामसे ब्रदर्स ने दर्शकों की नब्‍ज पकड़ कर हॉरर जॉनर की फिल्‍मों को बनाना शुरू कर दिया। बॉलीवुड में जब फिल्‍मों को 40 से 50 लाख रुपये में बनाया जा रहा था तब रामसे ने सिर्फ 3.5 लाख रुपये में फिल्‍म दो गज जमीन के नीचे बनाकर मोटा रुपया कमा लिया था। उस वक्‍त तक बॉलीवुड में भुतिहा फिल्‍मों पर कोई भी प्रोड्यूसर पैसा लगाने के लिए राजी नहीं होता था। लेकिन रामसे ब्रदर्स ने बॉलीवुड में भुतिहा फिल्‍मों की नीव रखी।



70-80 के दशक में बॉक्‍स ऑफिस के बेताज बादशाह बने 
रामसे ब्रदर्स ने हॉरर फिल्‍मों पर काम जारी रखा और 1980 में दूसरी हॉरर फिल्‍म गेस्‍ट हाउस को पर्दे पर लेकर आए, जिसे खूब पसंद किया गया। बॉलीवुड में हॉरर फिल्‍मों के चलन को शुरू किया और इसे मशहूर भी किया था। 1970 से 1980 के बीच रामसे ब्रदर्स ने दर्जनों हॉरर फिल्‍में बनाईं, जिन्‍हें दर्शकों ने खूब पसंद किया। इसके बाद  वीराना, पुराना मंदिर, पुरानी हवेली, दरवाजा, बंद दरवाजा समेत 30 से ज्‍यादा हॉरर फिल्‍मों को सिनेमाघरों में उतारा। खास बात ये रही कि इन सभी फिल्‍मों ने जबरदस्‍त कमाई की और सुपरहिट श्रेणी में शामिल हो गईं। रामसे ब्रदर्स की आखिरी फिल्‍म 'कोई है' 2107 में आई थी।  7 साल तक धुआंधार चलने वाली टीवी सीरीज जी हॉरर शो के लिए मशहूर हुए श्‍याम रामसे और तुलसी कुमार ने मिलकर इसे बनाया था। श्‍याम रामसे के भाई तुलसी कुमार की 2018 में मौत हो गई। इसके बाद मंगलवार 18 सितंबर को रामसे भाइयों में एक और मुखिया श्‍याम रामसे की मुंबई के एक अस्‍पताल में मौत हो गई।..NEXT


जानिए: मुहर्रम में क्‍यों निकलते हैं ताजिया, कौन था यजीद और किसने किया था इमाम हुसैन का कत्‍ल

कई हजार ईसा पूर्व पैदा हुये अजूबे

पाकिस्‍तान से आए रामसे ब्रदर्स ने बॉलीवुड में चलाया भुतिहा सिनेमा, कोई नहीं दे सका टक्‍कर

Tuesday, 10 September 2019

जानिए: मुहर्रम में क्‍यों निकलते हैं ताजिया, कौन था यजीद और किसने किया था इमाम हुसैन का कत्‍ल


इस्‍लाम धर्म को मानने वालों के लिए मोहर्रम शहादत का महीना माना जाता है। मोहर्रम की 10वीं तारीख को पूरी दुनिया के मुस्लिम इमाम हुसैन की याद में ताजिया और जुलूस निकालते हैं। धार्मिक मान्‍यता केतहत इस महीने में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

इस्‍लामिक नववर्ष का पहला माह शोक का 
मोहर्रम की शुरुआत से ही इस्‍लामिक कैलेंडर की शुरुआत मानी जाती है। मोहर्रम माह की 10वीं तारीख को पैगंबर मोहम्‍मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को कत्‍ल किए जाने से इस माह को शोक के तौर पर जाना जाता है। इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्यों से बचा जाता है। इस्‍लामिक कैलेंडर में कुल 12 महीने होते हैं। दूसरे महीने को सफर और अंतिम महीने को जुअल हज्‍जा के नाम से जाना जाता है। रमजान का महीना इस्‍लामिक कैलेंडर का सबसे पाक और महत्‍वपूर्ण महीना माना जाता है।


क्रूर यजीद ने विरोधियों को गुलाम बनाया 
मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक इस्‍लाम धर्म के पैगंबर मोहम्‍मद साहब के इस दुनिया से परदा करने के बाद उनके अनुयायियों ने सबकुछ संभाल लिया। इस बीच मदीना शहर के पास स्थित 'शाम' जगह जो कि मुआविया शासक के अधीन थी। मुआविया अरब देशों का राजा था। अचानक उसकी मौत के बाद यजीद ने सत्‍ता हथिया ली और खुद को खुदा मानने के लिए लोगों पर दबाव बनाने लगा।

वह चाहता था कि इमाम हुसैन भी उसकी सत्‍ता को स्‍वीकार कर लें तो वह पूरी दुनिया का राजा बन जाएगा। यजीद बेहद क्रूर और जालिम था, उसमें जुआ, शराब समेत सभी तरह के ऐब भरे हुए थे। कुछ लोगों ने उसके डर से उसका कहा मान लिया। इमाम हुसैन और उनके लोगों ने उस धूर्त यजीद की सत्‍ता स्‍वीकार नही की और मदीना शहर में कत्‍लेआम न हो इसलिए शहर छोड़कर इराक की ओर चल पड़े।



करबला का भयंकर युद्ध

मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ मदीना शहर छोड़ दिया और इराक की ओर चल पड़े। इस दौरान उनके साथ छोटे बच्‍चे और महिलाएं भी थीं। जब इमाम हुसैन का लश्‍कर करबला पहुंचा तो यहां पर यजीद की सेना ने उन्‍हें घेर लिया और रसद, पानी का रास्‍ता रोक दिया। यजीद की सेना के साथ 10 दिनों तक इमाम हुसैन के लश्‍कर ने युद्ध लड़ा।


हर दिन इमाम के लश्‍कर का एक योद्धा मैदान में पहुंचता और यजीद की सेना के पैर उखाड़ देता। भूखे प्‍यासे इमाम हुसैन के 72 साथियों को धीरे-धीरे यजीद के सैनिकों ने धोखा देकर कत्‍ल कर दिया। मोहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन को भी यजीद ने कत्‍ल कर दिया। युद्ध के दौरान मात्र 6 महीने के असगर अली को भी शहीद कर दिया गया। इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में दुनियाभर में शोक मनाया जाता है और मोहर्रम की 10 तारीख को ताजिया और जुलूस निकाले जाते हैं।

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