Sunday, 13 April 2014

दुनिया का सबसे बड़ा होटल

दस हजार कमरों वाला दुनिया का सबसे बड़ा होटल

यूं तो पूरे विश्व में कई अजब-गजब इमारतें हैं, लेकिन जर्मनी में बाल्टिक सागर के आइलैंड में स्थित होटल प्रोरा अपने आप में एक अजूबा है। इस होटल में तकरीबन दस हजार कमरे हैं। इतने कमरों वाला होटल पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। आपको आश्चर्य होगा कि दुनिया का सबसे विशाल होटल पिछले 7० सालों से वीरान पड़ा है।
जर्मनी के नाजी शासन ने इस विशाल होटल दा प्रोरा का निर्माण 1936 से 1939 के बीच में करवाया था। इसे बनाने में 9,००० लेबरफोर्स को तीन साल लगे थे।
 
होटल प्रोरा में एक समान 8 बिल्डिंग बनाई गई हैं और हर बिल्डिंग की लंबाई 4.5 किलोमीटर है। यह बिल्डिंग समुद्र से बमुश्किल 15० मीटर दूर है। इसमें चार एक जैसे रिसॉर्ट थे, सभी में सिनेमा, फेस्टिवल हॉल और स्वीमिग पूल भी थे।
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर का यह प्लान बहुत महत्वाकांक्षी था। वह एक घुमावदार सी रिसॉर्ट बनाना चाहता था, जो विश्व में सबसे विशाल हो। इस होटल के हर कमरे में दो बेड, एक अलमारी और एक सिक बनाया गया है। हर फ्लोर में टॉयलेट्स, शॉवर और सामूहिक बॉथरूम बनाए गए थे। बिल्डिंग के मध्य में यह व्यवस्था की गई थी कि युद्धकाल में इसे अस्पताल में बदला जा सके।
 
हिटलर का यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पूरा होता, इससे पहले ही द्बितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया। विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद पूर्वी जर्मनी के विस्थापितों को इस होटल में रखा गया था। इसके बाद जर्मनी ने इसका उपयोग एक मिलिट्री पोस्ट के लिए किया।
आज भी यह बिल्डिंग काफी खूबसूरत लेकिन वीरान है। हालांकि इसके कुछ ब्लॉकों को छोड़कर बाकी खंडहर हो गए हैं। 


2०11 में इसके एक ब्लॉक में 4०० बिस्तरों वाला अस्पताल बनाया गया। अभी होटल प्रोरा को 3०० बिस्तरों वाले एक हॉलीडे रिसॉर्ट में बदलने की तैयारी चल रही है। इसमें नए सिरे से टेनिस कोर्ट, स्वीमिग पूल और शॉपिग सेंटर और हर वो चीज बनाई जानी प्रस्तावित है, जिससे यह अद्भुत स्थलों में शुमार हो सके।
 

Tuesday, 8 April 2014

बेल का खेल


बेल का अजब खेल

बेल का पेड़ विश्व के कई हिस्सों में पाया जाता है। भारत में इस वृक्ष का पीपल, नीम, आम और पलाश वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। हिंदू धर्म में बेल का वृक्ष भगवान शिव की अराधना का मुख्य अंग है। बेल की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। इसके फल व पत्तियों मंे टैनिन, आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं।
मान्यता है कि शिव को बेल-पत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। बिल्व के पेड़ का भी विशिष्ट धार्मिक महत्व है। कहते हैं कि इस पेड़ को सींचने से सब तीर्थों का फल और शिवलोक की प्राप्ति होती है।
बेल का वृक्ष यूं तो पूरे भारत में पाया जाता है लेकिन विशेष रूप से हिमालय की तराई, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में चार हजार फीट की ऊंचाई तक यह पाया जाता है। मध्य व दक्षिण भारत में बेल वृक्ष जंगल के रूप में फैले हुए हैं और बड़ी संख्या में उगते हैं। यह भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसकी खेती भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्बीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्बीपसमूह में भी की जाती है।
 
यह पंद्रह से तीस फुट ऊं चा होता है। इसका कड़ा और चिकना फल कवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगंधित मीठा गूदा निकलता है, जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है।

आयुर्वेद में बेल वृक्ष को कई प्रकार से लाभकारी बताया गया है। इसके पत्तों, फलों को औषधि के रूप में बहुत प्रयोग किया जाता है। बेल की जड़ों की छाल का काढ़ा मलेरिया व अन्य बुखारों में हितकर होता है। अजीर्ण में बेल की पत्तियों का रस काली मिर्च और सेंधा नमक में मिलाकर पीने से आराम मिलता है। अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से इसका चूर्ण लेने पर आराम होता है। आंखें दुखने पर बेल के पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूंद आंखों में टपकाने से समस्या से निजात मिलती है। शरीर की त्वचा के जलने पर बेल के चूर्ण को गरम कर तेल में मिलाकर जले अंग पर लगाने से आराम मिलता है।
 

Sunday, 6 April 2014

कंकालों का घर

कंकालों का घर रूपकुंड झील

आप एडवेंचर ट्रैकिग के शौकीन है तो रूपकुंड झील आपके लिए एक बेहतरीन जगह है। रूपकुंड झील हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों में बनने वाली छोटी सी झील है।
यह झील 5०29 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है, जिसके चारों और ऊंचे-ऊंचे बर्फ के ग्लेशियर हैं। यहां तक पहंुचने का रास्ता बेहद दुर्गम है इसलिए यह जगह एडवेंचर ट्रैकिग करने वालों की पसंदीदा है। यह झील यहां पर मिलने वाले नरकंकालों के कारण काफी चर्चित है। यहां पर गर्मियों में बर्फ पिघलने के साथ ही कहीं पर भी नरकंकाल दिखाई देना आम बात है। यहां तक कि झील के अंदर देखने पर भी तलहटी में भी नरकंकाल पड़े दिखाई दे जाते हैं। यहां पर सबसे पहला नरकंकाल 1942 में रेंजर एच.के. मड़वाल द्बारा खोजा गया था। तब से अब तक यहां पर सैकड़ों नरकंकाल मिल चुके हैं। जिसमंे हर उम्र व लिग के कंकाल शामिल हैं। यहां पर नेशनल जियोग्राफिक टीम द्बारा भी एक अभियान चलाया गया था जिसमे उन्हें 3० से ज्यादा नरकंकाल मिले थे।
इस जगह पर इतने सारे नरकंकाल आए कैसे? इसके बारे में अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। 1942 में हुए एक रिसर्च से हड्डियों के इस राज पर थोड़ी रोशनी पड़ सकती है। रिसर्च के अनुसार ट्रैकर्स का एक ग्रुप यहां हुई ओलावृष्टि में फंस गया जिसमें सभी की अचानक और दर्दनाक मौत हो गई। हड्डियों के एक्सरे और अन्य टेस्ट में पाया गया कि हड्डियों में दरारें पड़ी हुई थीं जिससे पता चलता है कि कम से कम क्रिकेट की बॉल की साइज के बराबर ओले रहे होंगे। वहां कम से कम 35 किमी. तक कोई गांव नहीं था और सिर छुपाने की कोई जगह भी नहीं थी। आंकड़ों के आधार पर माना जा सकता है कि यह घटना 85० ईसवीं के आस पास की रही होगी।
एक दूसरी किंवदंती के मुताबिक तिब्बत में 1841 में हुए युद्ध के दौरान सैनिकों का एक समूह इस मुश्किल रास्ते से गुजर रहा था। लेकिन वे रास्ता भटक गए और खो गए और कभी मिले नहीं। हालांकि यह एक फिल्मी प्लॉट जैसा लगता है पर यहां मिलने वाली हड्डियों के बारे में यह कथा भी खूब प्रचलित है।
अगर स्थानीय लोगों के मानंे तो उनके अनुसार एक बार राजा 'जसधावल’ नंदा देवी की तीर्थ यात्रा पर निकला। उसको संतान की प्राप्ति होने वाली थी इसलिए वह देवी के दर्शन करना चाहता था। स्थानीय पंडितों ने राजा को इतने भव्य समारोह के साथ देवी दर्शन जाने को मना किया। जैसा कि तय था इस तरह के जोर-शोर और दिखावे वाले समारोह से देवी नाराज हो गईं और सबको मौत के घाट उतार दिया। राजा, उसकी रानी और आने वाली संतान को सभी के साथ खत्म कर दिया गया। मिले अवशेषों में कुछ चूड़ियां और अन्य गहने मिले जिससे पता चलता है कि समूह में महिलाएं भी मौजूद थीं। तो अगर आप सुपरनेचुरल और देवी-देवताओं में विश्वास करते हैं तो इस कहानी को मान सकते हैं। अपने साथ किसी स्थानीय व्यक्ति को ले जाइए और रात के समय यह कहानी उनसे सुनिए। आपके रोंगटे जरूर खड़े हो जाएंगे।


Friday, 4 April 2014

बहुत हो गई बेपरवाही


लाइफ का फंडा तो बदलना पड़ेगा बॉस


एक बिदास और स्मार्ट युवा लाइफ का यही फंडा है। खाओ, पियो और मौज करो। लेकिन जब इसी उम्र में चर्बी चढ़ने लगती है। सेक्सुअल डिसीज के आँकड़े बढ़ने लगते हैं और जब टेंशन के मारे युवा नशे के शिकार होने लगते हैं, तो फिक्र होना लाजिमी है। सो, बी केयरफुल, हेल्थ इज वेल्थ या यूं कहें कि जियो जी भर के मगर सलीके से।
ऐसा नहीं है कि यह उम्र लापरवाह होती है। अगर ऐसा होता तो सिक्स पैक एब और जीरो फिगर की चाह में युवा जिम में मशक्कत नहीं कर रहा होता। सभी युवाओं की इच्छा होती है वह सुंदर दिखें, सेहतमंद रहें लेकिन साथ ही उत्साह, जोश और मस्ती भी तो इसी उम्र का असर है। वह कहां-कहां से बचें और कितना बचें? उम्र की सारी खुशियां बटोरते हुए भी हेल्थ और ब्यूटी पाई जा सकती है। बस इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

 

लाइफ को समझें

युवाओं को पेरेंटस का रोकना-टोकना बुरा लगता है। लेकिन थोड़ा सा समझें कि वे इस उम्र से गुजर चुके हैं और उन्हें हमसे ज्यादा दुनियादारी का तजुर्बा है। ठीक है, उनका जमाना और था, हमारा जमाना और है। पर सेहत की बात तो हर वक्त उतनी ही सही और सटीक होती है, जितनी हमारे शरीर के लिए जरूरी है। हमें उनका कहा बुरा लगता है तो खुद सोचें कि क्या हम यूँ ही इस दुनिया से चले जाएँगे बिना अपने सपनों को साकार किए? नहीं ना? तो फिर सुबह जल्दी उठनाए मॉîनग वॉक पर जाना, जिम जाना या जंक फूड न खाना जैसी बातें हमें बुरी क्यों लगती हैं?
अगर हमें सपने पूरे करने हैं तो लंबे समय तक जीना होगा और जीने के लिए हेल्दी रहना होगा और हेल्दी रहने के लिए बस इन्हीं छोटी-छोटी बातों का पालन करना होगा। समझ गए ना ? तो जियो जी भर के मगर सही तरीके और सलीके से। अगर आपको पेरेंटस की रोक-टोक पसंद नहीं तो अपने नियम खुद बना लें आखिर सेहत भी तो आपकी है।

खुद करें चुनाव

यंगएज में उतावलापन, गुस्सा, तनाव, जोश सभी में नजर आता है। लेकिन हमें यह तय करना है कि हमें इतना गुस्सा क्यों आता है, किस बात पर आता है और किस पर सबसे ज्यादा आता है ? जब इनके जवाब खोज लें तो फिर यह तय करें कि आपके मन पर कौन राज करता है?
इसे कुछ यूँ समझें कि अगर कोई व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति आपको गुस्सा दिला रही है तो इसका मतलब है अपने मन पर आपने किसी और को डॉमेनेट करने की परमीशन दे रखी है। वो जब चाहे आपको गुस्सा दिला देता है। किस बात पर कितना गुस्सा करना है, यह कोई और नहीं, बल्कि आप खुद तय करें। अपने मन के राजा आप खुद बनें। इससे कम से कम दस बीमारियों से आप दूर रहेंगे। ऐसा मेडिकल साइंस कहता है।

टाइम-टेबल फिक्स करें

खाना, नहाना और सोना अगर जीवन में सिर्फ इन तीन बातों का भी आपने समय डिसाइड कर लिया तो समझो आपकी आधी लाइफ सुधर गई। समय पर खाने से शरीर का मेटॉबॉलिज्म सुधरता है। समय पर नहाने से शरीर का एक सही चक्र बनता है, जो सारे दिन फ्रेशनेश देता है। समय पर सोने से ब्रेन एक्टिव और हेल्दी रहता है। ब्रेन को पर्याप्त आराम मिलेगा तो आपकी डिसीजन मैकिग पॉवर स्ट्रांग होगी। अच्छी नींद, अच्छा खाना और अच्छे से नहाना ये बस सेहत के लिए ही नहीं सुंदरता के लिए भी जरूरी है।

गलतियों से बचें

इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिससे गलतियाँ नहीं होतीं। लेकिन एक ही गलती को बार-बार करना गलत है और इससे भी ज्यादा गलत एक गलती को उम्र भर के लिए अपराध मान लेना है। हर समय पश्चाताप की आग में जलना सही नहीं है, जिस दिन आपको यह एहसास हो कि आप गलत थे, बस वही दिन आपका नया दिन है।
पुरानी सब बातों, गलतियों और भूलों के लिए खुद को माफ करो। कहते हैं, जो एक बार गिरता है, वह संभल कर चलना सीख जाता है। इसलिए सब बातों पर धूल-मिट्टी डालो और आगे बढ़ जाओ। दुनिया आपको आपकी गलतियों के लिए माफ करे ना करे। आप खुद को माफ करें और जरूरत पड़ने पर खुद को ही सजा भी दें। लेकिन खुद पर दया न करें न ही खुद पर अत्याचार करें। यह दोनों बातें ही हेल्थ को नुकसान पहुँचाती हैं।